SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 885
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८०४ उत्तराधिकार [नवां प्रकरण wwwwwwwwwwwwwww दफा ६५८ हत्यारा वारिस कोई आदमी उस आदमी की जायदादका वारिस नहीं हो सकता जिसकी हत्यामें वह शरीक रहाहो, देखो--31 Mad. 100; 27 Mad. 591, 32 Boin. 275; 12 Bom. L. R. 149. वेदाम्मल बनाम वेदानायगा मुदालियर (1907) 31 Mad. 100 में यह बातथी कि पुत्रकी बारिस माता हुई थी। जिसपर कतलका अभियोग लगाया गया था । मगर वह अदालत फौजदारीसे बरी होगयी। मगर दीवानी के मामलों में विशेषकर उत्तराधिकारमें यह नहीं कहा जा सकता कि अदालत फौजदारीमें उसका अपराध प्रमाणित नहीं हुआ, इसलिये वह वारिस होनेके योग्य है। बापका दुश्मन-मदरास हाईकोर्टने माना है कि बापसे दुश्मनी रखने वाला पुत्र उत्तराधिकारसे बंचित कर दियाजावेगा, देखो - 27 Mad. 591, 14 M. L_J. 297; इलाहाबाद हाईकोर्ट की यह राय है कि जो पुत्र अपने पिता के प्रति दुश्मनीके काम अमलमें लाया हो या अपने पितासे ऐसी दुश्मनी रखता हो जिससे पिताके प्राणोंका भय हो तो यह बातें पुत्रको, बाप का वारिस होनेसे वंचित करने का आधार होसकती हैं, देखो-3 N. W. P. 267; 7 Ben. Sel. R. 62; Ben. S. D A. ( 1848 ) P. 320. दफा ६५९ धर्म या जातिसे च्युत ___ जातिच्युत होने या धर्म त्याग देनेसे कोई पुरुष या स्त्री वरासत से च्यत नहीं की जासकती, देखो-23 Mad. 171; एक्ट नम्बर 21 of 1850% 2 N. W. P. 446; 1 Agra 90; 1 Bom. 5593 W. R. C. R. 206; 1 Indian Jur. N. S 236; 88 I. A. 877 33 All. 356; 15 C. W. N. 545; 13 Bom. L. R. 427; 29 All. 487, इसका मतलब यह है कि जब कोई जातिच्युत वारिस उत्तराधिकार से वंचित किया जाता है तो वह जातिच्युत होने के कारण नहीं बल्कि कानून में माने हुये दूसरे दोषके कारण जो उसके जातिच्युत होनेके साथ लगा है, जैसे विधवा व्यभिचारके कारण जातिच्युत हुई हो और वरासतसे वंचित रखी गयी हो, तो यहां उसका वरासतसे वंचित रखाजाना उसके जातिच्युत होने के कारण नहीं है बल्कि उसके व्यभिचारके दोषके कारण है। धर्मच्युत होने के बारेमें मिस्टर मेन अपनी हिन्दूलॉ पेज 804 की दफा 593 में एक मुक़द्दमेका हवाला देते हैं जिसके वाकियात यह थे-रतनसिंह और उसका पुत्र दौलतसिंह दोनों मुश्तरका खानदानमें रहते थे । रतनसिंह मुसलमान हो गया। पीछे वे दोनों मरगये । दौलतसिंह एक विधवा और कुछ
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy