SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 880
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दफा ६५३ ] उत्तराधिकारसे बंचित वारिस भावार्थ-(१) मनु (श्र | श्लो० २०१, २०२) कहते हैं कि नपुंसक पतित, जन्मान्ध,बहरा,उन्मत्त,जड़, गूंगा और इन्द्रियहीन जैसे पंगुवा आदि ये सब उत्तराधिकारमें अपना हक़ नहीं पाते। सिर्फ अन्न वस्त्रके पानेका अधिकार रखते हैं। उनके हिस्सेकी जायदाद जिसे मिले उसको चाहिये कि नपुंसकादि लोगोंको उनके जीवन भर अन्न और वस्त्र देवे। (२) याज्ञवल्क्य (अ० २ श्लो० १४०-१४२) कहते हैं कि, नपुंसक, पतित, पतितके पुत्र, लंगड़ा, उन्मत्त, जड़, अन्धा, असाध्य रोगी अादिको निर्वाह योग्य भोजन वस्र आदि देना चाहिये, मगर वे. जायदादमें हक्क नहीं पावेंगे । नपुंसकादिके औरस पुत्र अथवा क्षेत्रज पुत्र यदि निर्दोष होंगे तो के हक्क पावेंगे इनकी कुमारी कन्याओंको विवाह होने तक पालन करना चाहिये और पुत्रहीन स्त्रियों को यदि वे सती हों तो उनका जन्म भर पालन करना चाहिये और व्यभिचारी होनेसे घरसे निकाल देने के योग्य हैं। (३) वृहविष्णु ( अ०१५ श्लो०३३-३५) कहते हैं कि-पतित, नपुं. सक, असाध्य रोगी और अन्धा आदि बिकलेन्द्रिय मनुष्य पैतृक धनमें भाग नहीं पाते, किन्तु उनका धन जो पावेगा वही उनका पालन करेगा। इनके औरसपुत्र पितामहके धनमें भाग पावेंगे, मगर पतित हो जानेके पश्चात् जो पुत्र पैदा होवें धनमें भाग नहीं पायेंगे। (४) गौतम (अ० २६ श्लो०१) कहते हैं-ऐसा भी मत है कि सवर्णास्त्रीका पुत्र भी यदि कुमार्गी हो तो पैतृक धनमें भाग नहीं पावेगा । जड़ और नमकको हक़ नहीं मिलेगा। इनके भागका पानेवाला इनका पालन करेगा। इसी तरहसे, जड़ आदिका पुत्र धनमें भाग पानेका अधिकारी नहीं है। (५) वसिष्ठ ( अ० १७ सू० ४६-४८) कहते हैं कि गृहस्थसे वानप्रस्थ अथवा सन्यासी हो जाने वाले पुरुष पिताके धनमें भाग नहीं पायेंगे। नपुंसक, उन्मत्त और पतित भी भाग नहीं पावेंगे, भाग लेने वालेको नपुंसक आदिकोंका पालन करना पड़ेगा। (६) बौधायन ( प्रश्न २ अ० २ श्लो०४३-४६ ) कहते हैं कि-जो लोग व्यवहारके योग्य नहीं हैं उनको सिर्फ भोजन वस्त्र देकर पालन करे। अन्धा, जड़, नपुंसक, व्यसनी, असाध्य रोगी तथा कर्मरहितका भी पालन करना उचित है । पतित और पतितसे उत्पन्न सन्तानको धनमें भाग नहीं देना चाहिये। (७) नारद ( विवादपाद १३ श्लो० २१-२२) कहते हैं कि-पिताका बैरी, पतित, नपुंसक, और उत्पात करने वाला, ये सब औरस पुत्र होनेपर
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy