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________________ दफा ६४४-६४५] औरतोंकी वरासत भी शामिल मालूम होती हैं, देखो-बालम्मा बनाम पल्लइया 18 Mad. 1687 170. दफा ६८२, ६८३, ६८६, देखो-- दफा ६४५ बम्बई प्रान्तमें कौन स्त्रियां वारिस होती हैं। बम्बई प्रान्तमें ऊपर कही हुई दफा ६४०,६४४ की पांच स्त्रियोंके अलावा नीचे लिखी स्त्रियां भी वारिस मानी गयी हैं (१)-बहन, चाहे वह सगी हो या सौतेली, बम्बई में बहन एक विशेष बचनके अनुसार जायदाद पाती है, अपने भाई के घराने में पैदा होने की वजहसे वह गोत्रज सपिण्ड भी मानी जाती है, देखो-4 Bom. 188. बम्बई प्रान्तमें दादीके न होनेपर बहन वारिस होती है, सगी बहनके न होनेपर सौतेली बहन वारिस होगी। बहन, भाईसे पहिले जायदाद नहीं पाती क्योंकि भाईका लड़का दादीसे पहिले वारिस होता है, देखो-मूलजी बनाम कृष्णदास 24 Bom. 563. भाईकी विधवाके पहले और सौतेली माके पहिले बहन जायदाद पानेका अधिकार रखती है। __मयूखला के अनुसार सगी बहन सौतेले भाईसे पहिले जायदाद पाती है, क्योंकि मयूखलॉ के अनुसार सौतेला भाई पितामहके साथ जायदाद पाने का अधिकारी होता है। सौतेली बहन चाचासे पहिले जायदाद पाती है, देखो-टीकम बनाम नाथा 36 Bom. 120.. . मदरास प्रान्तमें यद्यपि बहन वारिस मानी गयी है मगर वह एक बन्धु की हैसियतसे वारिस समझी जाती है। बङ्गाल, बनारस, मिथिलामें बहन वारिस नहीं मानी जाती थी मगर अब नये कानूनसे मानी जाती है। (२) मृत पुरुषके मरनेसे पहिले जो गोत्रज सपिण्ड मर चुके हैं उन सबकी विधवाये यानी सपिण्ड और समानोदक दोनोंकी विधवाये वारिस होंगी। लेकिन बन्धु या भिन्न गोत्रज सपिंडकी विधवाये नहीं। बल्लभदास बनाम सकरबाई 25 Bom. 281. इस तरह पर लड़का, बाप, भाई, भतीजा, चाचा, चाचाका बेटा आदि मृत पुरुषके गोत्रज सपिण्ड होते हैं, इसीलिये बम्बईके फैसलोंके अनुसार, लड़केकी विधवा, बापकी विधवा यानी सौतेली मा, भाईकी विधवा, भाईके लड़केकी विधवा, चाचाकी विधवा, सगे चाचा के लड़केकी विधवा यह सब गोत्रज सपिण्ड मानी गयी हैं। इसीसे जायदाद पानेकी अधिकारी हैं। यह विधवाये सगोत्र सपिण्ड होनेकी वजहसे बन्धुओं से पहिले जायदाद पाती हैं । यहांपर जो स्त्रियां वारिस बताई गई है वह उदाहरण हैं। इनके अलावा और भी होती हैं मगर वह सब बन्धुओंसे पहिले जायदाद पाती हैं । गोत्रज सपिण्डकी बिधवायें सिर्फ बम्बई प्रान्तमें वारिस मानी गयी हैं दूसरी जगहपर नहीं। इस किताबकी दफा ६४४ में जो स्त्रियां बताई गई हैं वह भी वारिस होती हैं। प्रकरण ११ में विस्तारसे देखो।
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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