SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 840
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दफा ६३२-६३३] बन्धुओंमें वरासत मिलनका क्रम . जाता है उसी सिद्धान्तसे लड़कीकी लाइनमें भिन्नगोत्रन सपिण्ड निश्चित किया जाता है । मित्रगोत्रन सपिण्डको बन्धु कहते हैं । बन्धुकी गणना कहांसे और कैसे की जाय, यह प्रश्न अब साफ होगया कि नहांसे और जैसे सविण्डकी गणनाकी जाय उसी तरह बन्धुकी भी। देखिये सपिण्डमैं सबसे पहले पुत्र को गिनते हैं, बन्धुमें सबसे पहले लड़कीके लड़केको गिनते है । लड़कीका लड़का यद्यपि बन्धु है, और बन्धुकी हैसियतसे उसका यही स्थान है किन्तु आचार्योके खास वचनोंके अनुसार उसे सपिण्डके साथ बारिस मान लिया है देखो दफा ६०६, ६२४. इसलिये अब सबसे पहले पुत्रकी लड़कीका लडका बन्धु माना जाता है । सपिण्डमें पौत्रका दर्जा दूसरा है, बन्धु पौत्रकी लड़कीके लड़केका दर्जा दूसरा है। मिताक्षरामें जिन बन्धुओंका नाम लिया गया है वे उदाहरणकी तौरपर कहे गये। देखो दफा ५९७. (२) प्रपौत्रकी बात परभी विचार कर लीजिये । सपिण्डम प्रपौत्र शामिल है किन्तु बन्धुमें नहीं। ऐसा क्यों हुआ ? उत्तर यह है कि प्रपौत्र पूर्ण पिण्डकी हद है, वह खुद सपिण्डमें शामिल है, किन्तु उसकी सन्तान नहीं । इसलिये जब प्रपौत्रकी सन्तान नहीं शामिल हो सकती तो बन्धुका सम्बन्धही नहीं पैदा होगा दफा ३९९ के २-४ सिद्धान्तको देख लीजिये । सपिण्डमें प्रपौत्रके पुत्रसे पहले विधवा, लड़की, लड़कीका लड़का, और माता क्रमसे वारिस मानी गयी हैं। इनमें किसीसे भी बन्धु नहीं बन सकता क्योंकि विधवा तो पुत्र और लड़कीका शरीर बनाती है और स्त्री-पुरुष दोनों मिलकर शरीर पैदा करते हैं, लड़की और लसीके लड़केकी बात ऊपर कह चुके हैं । मातासे बन्धु इसलिये नहीं बन सकताकि माता और पिता दोनोंके शरीरसे मृतपुरुषका शरीर बना है जिसके सम्बन्धसे बन्धुका विचार किया जाता है। अपने और अपनी बहनके शरीरमें माता-पिताके शरीरिक शोंकी समानता है इसलिये पुत्रकी लाइनके बाद जब ऊपरकी लाइनमें बन्धु विचार किया नायगा तो कहनकी पुत्र तीसरा बन्धु होगा, इसी प्रकार समझिये । (३) बन्धुओंके वरासत पानेका क्रम ६३७१ ३३८६ ६३९. दफामें कहा गया है यह ध्यान रखना कि बन्धुओं की संख्या १२३में समाप्त नहींहो जाती लेकिन हम देखते हैं कि बहुतेरे लोगोंका जायदाद पानेका हक कानूनन पैदा हो जाता है किन्तु वे अपना हक नहीं समझते ऐसी दशामें दूसरे लोग जो उनके मुकाविलेमें हक नहीं रखते जायदादपर काबिज हो जाते हैं या उसे लावारिसीमें सरकार जन्त कर लेती है सपिण्डकी हैसियतसे ५. और समानोदककी होसियतसे १४७ तथा बन्धुकी हैसियतसे १२५ यानी कुल ३२७ वारिस तो इस ग्रन्थमें स्पष्ट बताये गये हैं देखो दफा ६२४, ६३२१३८-६३९; फिर भी वारिसोंकी संख्या समाप्त नहीं है। दफा ६३३ बन्धु किसे कहते हैं मिताक्षरा में कहा है कि 'भिन्नगोत्राणां सपिण्डानांबन्धु शब्देन गृहणात्' मिन्नगोत्र सपिडोंको बन्धु कहते हैं। बन्धु और मिन्नगोत्र सपिडमें फरक नहीं है (दफा ५८१ ) बन्धु, स्त्री सम्बन्धी रिश्तेदार होते हैं केवल मर्द सम्बन्धी रिश्तेदार नहीं होते, 'वन्धु' वह रिश्तेदार कहलाते हैं जिनका सम्बन्ध एक या एकसे ज्यादा स्त्रियोंके द्वारा होताहो । बन्धु किसे कहते हैं ? देखो इस किताब की दफा ५६०, ५१.
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy