SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 838
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दफा ६३०-६३१] समानोदकोंमें घरोसत मिलनेका क्रम दूसरे सिद्धान्तके अनुसार (पुत्र) का मतलब सिर्फ लड़केसे है। इस दूसरे सिद्धान्तमें पुत्र शब्दमें पौत्रका अर्थ होना नहीं मानाजाता और (संतान) का मतलब नीचकी दो पीढ़ी तकका लिया गया है। . - तीसरे सिद्धान्तके अनुसार (पुत्र) और (सन्तान) का मतलब हर एक पूर्व पुरुषकी लाइन में उसकी छः पीढ़ी तक माना गया है। यही सपब है. कि तीनों सिद्धान्तोंमें फरक पड़ गया। अधिक देखना हो तो 34 All. 663. का केस देखो। साधारणतः हमने उत्तराधिकारके सिद्धान्तोंका दिग्दर्शन, करा दिया है। (४) समानोदकोंमें वरासत मिलनेका क्रम समानोदक नीचे लिखे क्रमानुसार उत्तराधिकारी होते हैं दफा ६३१ समानोदकोंमें उत्तराधिकारका क्रम किसी सपिण्डके न होनेपर वरासत 'समानोदक' को मिलेगी--(देखो दफा ५८८, ५६३) समानोदकोंमें भी वही क्रम माना जावेगा जैसा कि सपिण्डमें माना गया है, यानी नज़दीकी समानोदक दूरके समानोदकसे पहिले वारिस होनेका अधिकार रखता है। अर्थात् नज़दीकी कुटुम्बी समानोदकका हक्क दूरके कुटुम्बी समानोदकसे पहिले होगा और नज़दीकी कुटुम्बी समानो दकमें नज़दीकी रिश्तेदारका हक़ पहिले होगा। देखो, नकशा दफा ६२४... समानोदक किसे कहते हैं यह बात इस किताबकी दफा ५८८ में बताई गयी है। मिताक्षरामें समानोदकके लिये कहा गया है कि 'तेषामभावे समानोदकानां धनसम्बन्धः तेच सपिण्डानामुपरिसवेदितव्याः' । सपिंडके अभावमें समानोदक जायदाद पावेंगे, वह सात सपिण्डोंके ऊपरसे शुमार किये जाते हैं। नीचेके नकथेमें जो क्रम बताया गया है उसी क्रमके अनुसार मृत पुरुषकी जायदाद मिलेगी। यह क्रम केवल ५७ डिगरी तक ठीक समझना। समानोदकोंका फैलाव चौदह डिगरी तक हमने ननशेमें जाहिर किया है मगर यह निश्चित नहीं है कि समानोदक इतनेही होते हैं। चौदह दर्जेके पश्चात् समानोदक वारिसका कोई केस हमें नहीं मिला।
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy