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________________ दफा ६०३] मदीका उत्तराधिकार ३. लिये लिया गया हो जो 'ज़रूरी है अर्थात् जिस मरम्मतके बिना जायदादकी स्थिति कायम नहीं रह सकती, कोई औरत जायदादकी उन्नतिके लिये या उसको अच्छा बनानेके लिये कर्जा नहीं ले सकती और न इन्तकाल करसकती है। देखो हरीमोहन बनाम गनेशचन्द्र 10 Cal. 828. गनप्पा बनाम सूवीसन्ना 10 Bom. L. R. 927. ८-डिकरीके अदा करने के लिये जायदादका इन्तकाल किया जासकता है, अगर उस इन्तकालसे लाभ हो। . जहांपर डिकरीकी मालियतसे ज्यादा कीमतकी जायदाद बेंच दीगयी हो या रेहन कर दीगयी हो तो वह इन्तकाल जायज़ नहीं माना जा सकेगा। यही सूरत उस वक्त भी लागू होगी जब ज्यादा कीमतकी जायदाद डिंकरीके मतालबेकी अपेक्षा कममें बेची गई हो या रेहन कीगयी हो। ९-आखिरी मालिककी वरासतकासार्टीफिकट लेने के लिये-आखिरी मालिककी वरासतका सार्टीफिकट लेनेका खर्च और ( Letters of administration देखो दफा ५५८). चिट्ठियात एहतमामका खर्च कानूनी ज़रूरत माना गया है। देखो-श्रीमोहन बनाम वृजविवारी 36 Cal. 753. जब इन्तकालका समय ज्यादा बीत गया हो-ऐसी सूरतमें, जब किसी परिमित अधिकारी द्वारा किये हुये इन्तकालको बहुत समय व्यतीत होगया हो, और जहांपर दस्तावेज़ इन्तकालमें वर्णित वाक्यातोंसे यह विदित होता हो, कि इन्तकाल उचित तात्पर्यकी बिनापर किया गया है या कमसे कम खरीदारको उचित कारण बताये गये हैं, ऐसी अवस्थामें अदालतको चाहिये, कि यथासम्भव इन्तकालको बहाल रक्खे-अब्दुल सन्यामी बनाम रामचन्द्रराव 1926 M. W. N. 319. नोट-इस दफामें 'आखिरी मालिक' से यह मतलन है कि जो मर्द पूरे अधिकारों सहित जायदादपर कब्जा रखताहो, और जिसके मरनेपर जायदाद उसके वारिसको पहुंचीहो, देखो दफा ५५९; ५६३, ५६४ 'इन्तकाल' से यह मतलबह कि गिरवी रखना, बेंच डालना, दानमें देना, पुरस्कार देना; या अपने कब्जेसे बाहर कर देना। यह बात हमेशा स्मरण रखना चाहिये कि औरत अपने किसी फायदक लिये जायदाद इन्तकाल नहीं कर सकती और न कर्जा ले सकती है जिससे कि रिवर्जनर वारिस ( देखा दफा ५५८) पाबन्द हो जाय । यह दफा उन सक औरतोंसे लागूहै जिन्ह जायदाद उनकी जिन्दगी भर के लिये महदूद आधकारों सहित मिलाहो, जैसे-१ विधना, लड़की,३ मा,४ दादी,५ परदादी आदि । बम्बई प्रांतमें औरतें उत्तराधिकारमें पूरे अधिकारों सहित मर्द से जायदाद पाती है और इसी से उनके मरनेके पश्चात् उनके वारिसोंको वह जायदाद मिल जातीहै, इसी सबब से उन्हें मर्दसे पाई जायदाद पर 'इन्तकाल' कग्नेका अधिकार प्राप्तहै उनके लिये इस दफासे कुछभी जरूरत नहीं है । कानूनी जरूरीके विषयमें और देखो दफा ४४०, ३३, ६७७, ७०२, ७०६, ७०७.
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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