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________________ दफा ५६२-५६३ ] साधारण नियम कि मुतवफ्रीका कोई ऐसा वारिस न हो जो उसकी आत्माको लाभ पहुंचा सके, नज़दीकी सम्बन्धीके लिहाज़से भी पुत्रीका प्रपौत्र वारिस नहीं होसकता नेपालदास मुकुरजी बनाम प्रभासचन्द्र 90 I. C. 499; 42 C.L. J.221. . उदाहरण-जय और विजय दोनों भाई हैं और मुश्तरका परिवारके मेम्बर हैं तथा दायभागलों के प्रभुत्वमें रहते हैं। जय मर गया और उसने अपने भाई विजय और अपनी विधवा तुलसीको छोड़ा। ऐसी सूरतमें जयका हिस्सा जो मुश्तरका जायदादमें था वह उसकी विधवाको बतौर वारिसके ठीक उसी तरहपर मिल जायगा मानो वह दोनों अलहदा रहते थे। अर्थात् दायभागलॉ के अनुसार मुश्तरका स्नानदानके हर एक मेम्बरके मरनेपर उनके वारिस जायदाद पाते हैं जितने हिस्सेका मरनेवाला अपनी ज़िन्दगीमें मालिक था। यह मानागया है कि भाईकी बनिस्बत विधवा नज़दीकी वारिस होती है। दफा ५६३ वारिस किस तरह निश्चित करना चाहिये । जब किसी जायदादका वारिस निश्चित करना हो तो पहिले यह मालूम करो कि उस जायदादका आखिरी पूरे अधिकार रखनेवाला मालिक कौन था। जब यह मालूम हो जाय तो उस आखिरी पूरे अधिकार रखनेवाले मालिकका वारिस अब जो कोई हो वही जायदाद पानेका हकदार है। आखिरी पूरा मालिक वह है (चाहे मर्द हो या औरत ) जिसके कब्ज़ेमें जायदाद सबसे पीछे सम्पूर्ण अधिकारों सहित और अलहदा रही हो। जैसे उदाहरण-मङ्गल, और अतुल दो भाई हैं । इनकी माकानाम है सुभद्रा और मंगलकी स्त्रीका नाम चन्द्रमुखी है। चाचा ( बापका भाई ) का नाम बल. वन्त है । मंगल मरा और उसने अपनी विधवा चन्द्रमुखी भाई अतुल, मा सुभद्रा और चाचा बलवन्तको छोड़ा। मगर मंगल आखिरी पूरा मालिक उस जायदादका था जो उसके क़ब्ज़ेमें अलहदा थी इस वजहसे उसकी विधवा चन्द्रमुखी बतौर वारिसके पतिकी जायदाद लेगी, लेकिन विधवा उस जायदादकी पूरी मालकिन नहीं है, इसीलिये इस जायदादका वारिस निश्चित करने के लिये विधवासे गिनती नहीं की जायगी। विधवाके मरनेपर जायदादका जो आखिरी पूरा मालिक मंगल था उसके दूसरे वारिसको मिलेगी। यानी उसकी मा सुभद्रा वारिस है उसको मिलेगी। मा भी जायदादकी पूरी मालकिन नहीं होगी इसलिये मा के मरनेपर जायदाद माके वारिसको नहीं मिलेगी। अब वारिस फिर उसी तरहपर तलाश किया जायगा कि जायदादका आखिरी पूरा मालिक कौन था ? जायदादका आखिरी पूरा मालिक मंगल था तो अब माके मरनेपर मंगलके दूसरे धारिसको मिलेगी। मंगलका अब वारिस उसका भाई अतुल है। तो अतुलको जायदाद मिली, अतुल मर्द होनेके सबबसे संपूर्ण अधिकारों सहित जायदादको पाता है वह जायदादका पूरा मालिक होगया और इसलिये अतुलके मरनेपर जायदाद अतुलके वारिसको मिलेगी न कि
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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