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________________ ६५० बटवारा [आठवां प्रकरण (३) अगर अदालतके लगाये हुये दामपर खरीदारीकी इच्छा करने वाला हिस्सेदार उस हिस्से या हिस्सोको न खरीदना चाहे तो उसको दरख्वास्तका सब खर्चा ( अगर कोई हो) देना पड़ेगा। दफा ५४३ रहनके मकानके हिस्सेके बटवारेका दावा ( उक्त कानून बटवाराकी दफा ४.) (१) जब मुश्तरका खान्दानके रहनेके मकानका एक हिस्सा किसी ऐसे आदमीको मुन्तकिल किया गया हो जो उस मुश्तरका खान्दानका आदमी नहीं है, और वह आदमी उस हिस्सेके बटवारेका दावा करे, और उस मुश्तरका खान्दानका कोई हिस्सेदार उस हिस्सेके खरीदनेको तैय्यार हो, तो अदालत जैसे मुनासिब समझे उस हिस्से का दाम लगायेगी और उसे उस हिस्सेदारके हाथ बेच देनेकी आज्ञा देगी और उस सम्बन्धमें जो ज़रूरी और उचित हिदायते हों करेगी। ... (२) ऊपर कहे हुये इसी दफाके अङ्क १ के अनुसार जब मुश्तरका खान्दानके दो या ज्यादा हिस्सेदार अलग अलग उस हिस्सेके खरीदनेको तैय्यार हों तो अदालत वही कार्रवाई करेगी जो दफा ३ के अङ्क २ में कही गयी है। दफा ५४४ अयोग्य फरीकोंका स्थानापन्न (उक्त कानून बटवाराकी दफा ५ ) जब किसी बटवारेके मुकदमे में कोई आदमी जो अयोग्य फरीक़की तरफ़से उस मुकदमेमें अधिकार प्राप्त स्थानापन्न हो, उस अयोग्य फरीक़की ओरसे बिक्रीकी दरखास्त करे या खरीदनेको तैय्यार हो और मंजूरी मांगे तो अदालत उसकी दरखास्त तभी मंजूर करेगी जबकि वह यह देखेगी कि वह बिक्री या खरीद उस अयोग्य फरीक़के लिये लाभकारी होगी। दफा ५४५ नीलाममें निश्चित मूल्य और हिस्सेदारकी बोली (उक्त कानून बटवाराकी दफा ६.) (१) दफा २ के अनुसार जो नीलाम होगा उसमें मूल्य निश्चित रहेगा, और वह मूल्य अदालत समय समय पर जैसा मुनासिब समझे निश्चित करेगी। (२) ऐसे हर एक नीलाममें हर एक हिस्सेदारको यह अधिकार है कि बोली बोले और डिपाज़िटका रुपया अदा न करे या मूल्यका रुपया या उसका कोई हिस्सा उसी वक्त अदा करने के बजाय, जैसा कि अदालत उचित समझे उस हिस्सेदारके किसी हिसाबमें काट ले। नोट-'निश्चित मूल्य' यह वह मूल्यहै नो अदालत निश्चित करती है और जिससे कमर वह जायदाद नीलाम नहीं रा सकती।
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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