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________________ ६०० पैतृक ऋण अर्थात् मौरूसी क़ज़ा [सातवां प्रकरण रखी हुई जायदादपर कब्ज़ा न पा सके या उसका रुपया न वसूल कर सके तो हमारे खान्दानकी अमुक जायदादसे वह कर्ज हरजाना सहित वसूल किया जावे । ६ वर्षके बाद उस रेहन रखी हुई जायदादसे बेदखल होनेपर महाजन ने पुत्रोंपर बापके इक़रारके अनुसार कर्ज और हरजानेके वसूल करनेकी नालिश की परन्तु अदालतने उसकी डिकरी नहीं दी। पिता द्वारा रेहननामा--यदि किसी मुश्तरका खान्दानका मेनेजर किसी रेहननामे द्वारा जायदादपर क़र्ज़ करता है और यदि वह संयोगवश पिता है तो उसके पुत्रोंपर उस रेहननामेकी पाबन्दी होगी, यदि रेहननामेकी रकम पूर्व कर्ज चुकाने के लिये सर्फ कीगई है। यह बात साधारण नियमके मातहत है कि पुत्र उस जिम्मेदारीसे उस वक्त बच सकते हैं जब वे यह साबित करें, कि पूर्व कर्ज़ और तहजीबी या गैर कानूनी था। एक नालिशमें, जो मुद्दईने एक रकमकी वसूलीके लिये, जिसे किप्रतिबादियोंके पिताने रेहननामेके द्वारा लिया था दायर किया था यह मालूम हुआ कि एक पूर्व रेहननामेके खिलाफ डिकरीमें जिसका कि पिता एक फरीक था, पीछेसे रेहनकी हुई जायदादका एक हिस्सा प्रतिवादियों द्वारा खरीदा गया था। तय हुआ कि मुद्दई प्रतिवादियों द्वारा इस प्रकार खरीदी हुई जायदाद को अपने रेहननामेकी बिनापर नीलाम नहीं करा सकता था-कन्हैयालाल बनाम निरञ्जनलाल 23 A. L. J. 52; L. R. 6 All. 247; 47 A. 351; A. I. R. 1925.
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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