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________________ पैतृक ऋण अर्थात् मौरूसी क़ज़ा [सातवां प्रकरण जायदादसे और उस जायदादसे जो बापके मरने के पश्चात् पुत्रोंको मिली हो कर्जा वसूल कर सकता है, देखो-4 Mad. 1; 4 Mad. 21-45; 8 Bom. 220; 8 Bom. 309; 26 W. R.C. R. 202; 10 Bom. H.C. 361; 11 Bom. H. C. 763 13 Bom. 653; 12 W. R.C. R. 41; 3 Mad. 42. बापके कर्जेका डिकरीदार उस जायदादसे भी अपनी डिकरी वसूल नहीं कर सकता जो बाप और पुत्रोंके बीच में नेकनीयतीसे बटवारा हो जाने पर पुत्रोंके हिस्से में आयी हो देखो-बटवारेसे पहलेके कर्जेसे इसका सम्बन्ध नहीं होगा, 24 Mad. 555. कृष्णासामी बनाम रामसामी एय्यर 22 Mad. 519.में माना गया कि अगर बटवारा बापके कर्जेके मारनेकी नीयतसे किया गया हो तो डिकरीदार वसूल कर सकता है। बङ्गाल स्कूल-बङ्गाल स्कूलमें बापकी जिन्दगीमें पुत्रोंका कोई हक मौरूसी जायदादमें नहीं होता इसलिये वापके उचित और अनुचित सब तरह के कर्जे जिनका दावा किया जा सकता हो मौरूसी जायदादसे वसूल किये जा सकते हैं और बापके मरनेपर उसकी छोड़ी हुई मौरूसी जायदाद और अलहदाकी जायदाद जो पुत्रोंके कब्जे में आवे दोनों से यह कर्जा वसूल किया जा सकता है। हनशिफ़ाकी हुई जायदादपर लदे कर्जकी अदाईके लिये रेहननामापरिवारके लिये कोई लाभ न प्रमाणित हुश्रा-पुत्रपर पाबन्दी नहीं है--भगवतीसिंह बनाम गुरुचरन दुबे 92 1. C. 332 (1); A. I. R. 1925All.96. पुत्रके बरी करनेकी दशामें--एक नालिश, एक हिन्दू पिता द्वारा लिखे हुये प्रामिज़री नोटपर दायर कीगई। पुत्र भी बतौर मुद्दाअलेहके फरीक बनाये गये किन्तु बादको रिहा कर दिये गये । रकमकी एक डिकरी प्राप्त कीगई और उसकी तामीलमें खान्दानी जायदाद नीलाम कराई गई। अर्जी तामील और नीलामकी सार्टीफिकट दोनोंमें यह नोट लिखा था कि पुत्र रिहा कर दिये गये हैं--तय हुआ कि जो कुछ खरीदारको प्राप्त हुआ वह पिताका अधिकार था और यह वाकया कि सार्टीफिकट नीलाममें सर्वे नम्बर बिना यह बताये हुये, कि केवल पिताका अधिकार ही नीलामके योग्य है दर्ज किया गया है, विरोधजनक नहीं है--नाटेश पाथार बनाम सुब्बू पाथार 23 L. W. 349; 94 I.C. 68. किसी हिन्दू पिता द्वारा किया हुआ रेहननामा, अपनी स्वयं उपार्जित जायदादके बचानेके लिये, यानी उस जायदादको बचानेके लिये जिसे उसने अपने चचाज़ाद भाईसे बतौर वारिस पाया है, ऐसा रेहननामा नहीं है, जो किसी पारिवारिक आवश्यकता या पूर्वजोंका ऋण चुकानेके लिये किया गया
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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