SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 668
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दफा ४६१-४६३ ] पुत्र और पौत्रकी जिम्मेदारी खान्दानकी जायदादका ट्रस्टी काशीनाथको नियत किया । काशीनाथपर यह दावा किया गयाकि उसकी बेहद्द बदइन्तज़ामीके सबबसे जायदादको नुकसान पहुंचा है, १४४०३ = ) ७ की डिकरी काशिनाथपर हुई इस डिकरीका रुपया वसूल करनेके लिये सताराकी अदालतमें डिकरी भेजी गयी। वहां पर काशीनाथ और उसके लड़के हनुमन्त और नारायणके हक़ सहित मौरूसी जायदाद कुर्क की गई, हनुमन्त और नारायणने उज्र किया कि हमारा हिस्सा बरी कर दिया जाय। हाईकोर्टने कहा कि अदालत दीवानीके नियम भङ्ग करनेले बाप पर जो डिकरी ट्रस्टीकी हैसियतसे हो उसका विचार हिन्दूलॉ के असदव्यवहार और बे क़ानूनी क़जके अनुसार नहीं किया जा सकता, इसलिये लड़के ऐसी डिकरीके पाबन्द हैं; देखो --हनुमन्त काशीनाथ जोशी बनाम गणेश अन्नाजी (1918) 21 Bom. L. R. 435-448. ५८७ जब पिता द्वारा पूर्वजोंका ऋण अदा करनेके लिये इन्तक़ाल किया जाय, तो उसकी पाबन्दी पुत्रोंपर होगी, चाहे पूर्वजोंके रेहननामेका कोई भाग, बतौर रेहननामेके ही तामीलके योग्य हो और पितापर व्यक्तिगत उसकी कोई जिम्मेदारी न हो -- सत्यनारायन बनाम सत्यनारायन मूर्ति - (1926) M. W. N. 7; 92 I. C. 85 (1) ; A. I. R. 1926 Mad. 428; 50M. L. J. 144. पिता के विरुद्ध डिकरी - तामीलके समस्त खान्दानी जायदादका मय पुत्रोंके अधिकारके नीलाम होना दे सोडजा बनाम वामनराव 91 I. C. 984 ( 1 ); A. I. R. 1926 Bom. 117. हिन्दू पुत्र के खिलाफ, डिकरीका डिकरीदार यह अधिकार रखता है कि उसके मुश्तरका खान्दानकी जायदादके बंटे हुये हिस्सेको, जो पिताके क़ब्ज़े में हो कुर्क और नीलाम करा सके, किन्तु यह अधिकार उसी सूरतमें है जब पुत्रको यह अधिकार प्राप्त हो कि वह पिताके जीवनकालमें ही बढ़वारा - करा सकता है । पञ्जाबमें यह आम तरीक़ा है कि पुत्र इस प्रकार बटवारा नहीं करा सकता -गहरूराम बनाम ताराचन्द 89 1. C. 176. दफा ४९३ बापकी ज़िन्दगी में पुत्र कहां तक ज़िम्मेदार हैं बापके जीवनकालमें लड़के अपने बापके क़र्जेके लिये मुश्तरका जायदादके अपने हिस्से तक ज़िम्मेदार हैं और बापकी जायदाद जो उनके हाथमें आयी हो वह भी जिम्मेदार है अर्थात् बापने दुनियांसे सम्बन्ध छोड़कर सन्यास या साधुता अङ्गीकार करली हो या इतने दिनों तक लापता हो गया हो जिससे वह मरा हुआ समझा जा सकता हो और समझा भी जाता हो । इन दोनों सम्बन्धोंसे जो जायदाद बापके हिस्सेकी लड़कोंके पास आये वह
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy