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________________ पैतृक ऋण अर्थात् मारूसी कर्जा [सातयां प्रकरण 'VVVVVVVVVVV. Xwvvw nonvvi श्यक नहीं है कि कानूनी प्रावश्यकता साबित की जाय--शिवप्रसाद बनाम बलवन्तसिंह A. I. R. 1927 All. 150. नोट--जबसे यह फैसला प्रित्रीकौंसिलका हुआ सब जगह माना जाने लगा है कि बापने यदि कोई कर्जा प्रामेसरी नोट या सादी दस्तावेज या दूसरी तरहसे लिया हो जिसमें जायदाद रेहन नहीं कीगयी, पीछे उस फर्जके चुकाने के लिये बापने मुश्तरका जायदाद रेहन करदी ऐसी सूरत में वह कर्जा मौरूसी कर्जा (पैतृक ऋण) माना जायगा, रेइन नामा जायज होगा, पुत्र जिम्मेदार होंगे । किंतु यदि बापने पहलेही मुश्तरका जाय दाद रेहन करके कर्जा लिया हो तो वह पैतृक ऋण नहीं माना जायगा। यही बात दादा और पोतेके बीच समझना । अब प्रिवी कौंसिलने अपनी राय बदल दी है अब यह बात नहीं मानी जाती, देखो इस किताबका पेज ५२८ में “अब प्रिवीकौंसिलकी क्या रायहै'। दफा ४८२ जब लड़के फरीक न बनाये गये हों तो क्या पाबन्दी है ? मुश्तरका जायदादको जब बापने रेहन कर दिया हो और उस रेहननामाके अनुसार अदालतसे डिकरी होगयी हो मगर उस मुकदमे में लड़के फरीक न बनाये गये हों तो भी उस डिकरीके लड़के पाबन्द हो सकते हैं किन्तु इसमें भी मतभेद है। ट्रान्सफर आव प्रापर्टी (कानून इन्तकाल जायदाद ) एक्ट नं०४ सन १८८२ ई० के अनुसार जब रेहनका कोई दावा किया जाय तो माना गया है कि उस दावासे वही फ़ीक़ पाबन्द होंगे जो उसमें दरअसल तरीक़ बनाये गये हों-इसपर मतभेद है । मिताक्षरालॉ मानने वाले कुटुम्बके बापने मुश्तरका खान्दानकी जायदाद रेहन करदी हो, वह रेहन, और मुश्तरका खान्दानके मेनेजरकी हैसियतसे जो रेहन कीगयी हो, इन दोनोंका दर्जा बराबर है। उपरोक्त ऐक्ट नं०४ सन् १८८२ ई० के पास होनेसे पहले यह माना जाता था कि बापकी रेहनकी हुई जायदादके रेहननामेके अनुसार जो डिकरी अदालतसे हो जाय और चाहे उसमें लड़के जो बापके शरीक रहते थे फरीकन भी बनाये जांय तो भी लड़के उस डिकरीके पाबन्द माने जायंगे क्योंकि बाप कुटुम्बके मुखियाकी तौरपर माना गया है, देखो-4 Mad. 1; S. C. (1885) 9 Mad. 343; 5 Mad. 251; 6 Bom 520; 9 Cal. L. B. 350; 4 Mad. 111; 14 I. A. 187; 15 Cal. 70;2 All. 746; 3 All 72; 3 All. 191; 3 All. 443; 11 Cal. L. R. 263. उपरोक्त कानून इन्तकाल जायदादकी दफा ८५ में कहा गया है कि जो जायदाद रेहन रखी गयी हो उसमें जितने आदमियोंका हक़ हो वे सब उस रेहनके मुकदमे में फ़रीक़ बनाये जायंगे मगर शर्त यह है कि मुद्दईको यह मालूम हो कि उस जायदादमें उन लोगोंका भी हक़ है। इस पर बङ्गाल हाई.
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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