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________________ पैतृक ऋण अर्थात् मौरूसी क़र्जा (सातवां प्रकरण गया हो, तो इस प्रकारका विचार नहीं होता। इस सूरतमें, यदि इन्तकाल कानूनी आवश्यकता द्वारा प्रमाणित न किया गया हो, तो वह बहाल नहीं किया जा सकता--नानकचन्द बनाम रामप्रसाद 92 I. C. 316; A. I. R. 1926 All. 250. ___ कर्ज़-एक मुर्तहिनने एक हिन्दू पिता और उसके पुत्रोंके खिलाफ रेहननामेकी रकम वसूल पानेके लिये नालिश किया । दौरान नालिशमें मुर्तहिनके वकीलने बयान किया, कि उसे कर्जकी पाबन्दी पुत्रोंपर श्रायद होती है। पिताके विरुद्ध एक सादी रकमकी डिकरी प्राप्त हो गई । इसके पश्चात पुत्रों ने नालिश द्वारा यह हुक्म इस्तारारियाचाहा कि पिताके खिलाफ प्राप्त सादी रक्रमकी डिकरीकी पाबन्दी संयुक्त परिवारकी जायदादपर नहीं हो सकती और उसके अनुसार वह कुक्र या नीलाम नहीं की जा सकती । इस नालिश के सम्बन्धमें मुर्तहिनके वकील के बयानकी वजहसे न तो इस्टापल और न अन तजवीज़ शुदा ( Res-Judicata. ) के सिद्धांत लागू होते हैं, मनोहरलाल बनाम इमदादअली A. I. R. 1927 Oudh. 15. पितामह द्वारा रेहननामा-रेहननामेकी रकम चुकानेके लिये, बादको बयनामा हुआ उसमें प्रपौत्रके विरोध करनेका अधिकार है जिसका बयनामेके पश्चात जन्म हुआ था । नालिशके चलाये जानेकी योग्यता-मियाद, लाल बहादुर बनाम अम्बिकाप्रसाद 23 L. W. 220; 91 I. C. 471; 28 0.C. 371; 12 0.L.J. 689; 30 0.W.N. 701; A.I.R. 1925 P. C. 264. मुद्दाअलेहको हन शिफ़ाकी एक डिकरी,एक बयनामेके सम्बन्धमें, जोकि एक हिन्दू मुश्तरका खान्दानके पिता द्वारा लिखा गया था, प्राप्त हुई। उसके डिकरी प्राप्त करने तक, वह पूर्वजोंका क़र्ज़, जिसके लिये पिताने बयनामा लिखा था अदा कर दिया गया और हक़शिफ़ा करने वाले द्वारा खरीदारको बयनामेका अदा किया हुआ रुपया खरीदार (पिता) द्वारा ऐसे कामके लिये खर्च कर डाला गया, जिसकी पाबन्दी खान्दान पर नहीं थी । पुत्रों द्वारा मुद्दाअलेहके पक्षके बयनामेको रद करनेकी नालिशमें तय हुआ कि उनपर बयनामेकी पाबन्दी नहीं है और उन्हें जायदादको वापस पानेका अधिकार है, जवाहिरसिंह बनाम उदय प्रकाश 24 A. L. J. 97; (1926) M. W. N. 197; 53 I. A. 36; 3 C. W. N. 365, 48 A. 152; 93 I.C. 216; 43 C. L. J. 374; 30 C. W. N. 698; A. I. R. 1926 P. C. 16;50 M. L. J. 344 ( P. C. ) संयुक्त परिवारका पिता-प्रतिनिधि स्वरूप नालिशमें माना जायगा, नारायण बनाम धूंधा बाई 92 I. C. 663; A. I. R. 1925 Nag. 299. पिता द्वारा बतौर मेनेजरके बिला ज़रूरत रेहननामा--पीछेका रेहननामा--पीछेके मुर्तहिनको, जिसने पहिलेके रेहननामेको चुकानेकी गरज
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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