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________________ ५६६ पैतृक ऋण अर्थात् मौरूसी क़र्जा [सातवां प्रकरण जिम्मेदार पुत्र नहीं है। धूर्त प्रादिकोंके देनेके लिये पिताका इकरार पुत्रोंके लिये निश्चित निष्फल होता है, यही बात शातातपने कही है अनुचित काम कौनसे हैं इसका वर्णन बृहस्पतिने इस प्रकार किया हैबापने जो कर्जे शराब पीने के लिये या जुवां खेलने के लिये, लिये हों या बदला पाये बिना किसी लिखत द्वारा अपने ऊपर कर्जा मान लिया हो या कामान्ध होकर या क्रोधान्ध होकर कर्जा लियाहो या उस रकमके लिये जिसका ज़ामिन् बाप हुआ हो, या जुर्माना, या महसूलकी रकमके लिये; या उनका बकाया अदा करनेके लिये, पुत्र पाबन्द नहीं है। मि० कोलबुक कहते हैं कि जो रुपया बापने रिश्वतमें देने का वादा किया हो या उसका कोई हिस्सा बाकी हो तो वह पुत्रकी जिम्मेदारीले भिन्न है इस रिश्वतके मामलेपर; दिवाकर बनाम नर जनार्दन पाटेकर ( 1822 ) 2 Borr. 194, 200; का मुकदमा देखो-स्ट्रेन्ज Vol. 1 P. 167 में कहते हैं कि खिलौने, या अनावश्यक सुखोपभोगकी वस्तुयें जो बापने देने कही हों उनकाभी जिम्मेदार पुत्र नहीं होता । नीचे साफ तौरसे बर्तमान कानूनके अनुसार अर्थ और उसका फल समझिये ऊपर जो यह कहा गया है कि जिस रकमके लिये बापने ज़मानत की हो उसके लिये पुत्र पाबन्द नहीं है इसमें ज़मानत इस तरहकी समझना चाहिये कि जैसे किसीसे अदालतकी हाजिरीके लिये, या शांति बनाये रखने के लिये या नेक चलन रहने के लिये ज़मानत ली जाती है; देखो-ब्रुकडाइ जेस्ट Vol. 1 P. 246 परन्तु जब बापने किसी कर्जकी ज़मानतकी हो तो कई मुक़दमों में पुत्र उस ज़मानतके कर्जे के पाबन्द माने गये हैं, देखो--28 Mad. 377; 26 All. 611; 23 Bom. 454; 11 Mad. 373; 13 C. W. N. 9; लेकिन साथ ही यह भी माना गया है कि जब बापने ज़ामिन् होनेके बदलेमें कोई रकम पायी हो या उसका बदला किसी दूसरे रूपमें पाया हो तभी पुत्र उस ज़मानत के पाबन्द हो सकते है अन्यथा नहीं ही सकते, देखो-नारायण बनाम बेङ्कटा चार्य 28 Bom. 408; 6 Bom L. R. 4:34 यह ध्यान रहे कि इस मामले में पुत्र और पौत्र दोनों समान हैं जो पुत्रके लिये कायदा लागू होगा वही पौत्र के लिये। कोई फौजदारी अपराध या जाल या और कोई ऐसा काम, जो काम बापको एक भले और प्रतिष्ठित आदमीकी हैसियतसे नहीं करना चाहिये था अगर वह करे और उससे कोई फर्ज पैद हो तो पुत्र उसके पाबन्द नहीं होंगे। जैसे बापने यदि कोई माल चुराया हो और उसे खर्च भी कर डाला हो ऐसे मालके बारेमें जो डिकरी रुपया दिला दिये जानेकी दीवानी अदालतसे हो उस डिकरीके देनदार पुत्र नहीं होंगे; देखो-दुरबार खचार बनाम खचर हारसुर (1908) 32 Bom. 348; 10 Bom. L. R. 297; या
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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