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________________ दफा ४७७] पुत्र और पौत्रकी जिम्मेदारी यदि किसी अविभाजित हिन्दू परिवारका प्रबन्धक पिता हो और शेष सदस्य पुत्र हों, तो पिता द्वारा लिये हुए समस्त क्रोंकी डिकरीकी तामील, केवल उस कर्जे को छोड़कर, जो गैर तहज़ीबी साबित किया जाय, मुश्तरका जायदादपर होगी। अतएव इस बातका भार पुत्रोंपर होगा, कि यदि वे खान्दानी जायदादको उस डिकरीसे बचाना चाहें, जो उनके पिता द्वारा लिखे हुए प्रामिज़री नोंटकी बिनापर है तो वे उस क़ज़ को गैर तहज़ीबी साबित करें। शाह श्री किशनदास बनाम कन्हैय्यालाल 20 W. N. 206; 86 I. C. 897; 12 O.L. J. 232; A. I. R. 1925 Oudh. 559. ____ पितामह द्वारा क़र्ज़-पितामहके क़र्जके अदा करनेकी जिम्मेदारी पिता के कर्जके साथही साथ है और उसके सूदके श्रदाई की भी जिम्मेदारी है। वृहस्पतिका वह वाक्य, जिसमें यह बताया गया है कि पितामहके कर्जके सूद की अदाईकी पाबन्दी नहीं है भारतीय अदालतोंमें नहीं माना गया है। लाडू नारायनसिंह बनाम गोबर्धनदास 1925 P. H. C. O. 104, 6 P. L. T, 497; 86 I. O. 721; 4 Pat. 478; A. I. R. 1925 Paha 470. बटे हुए खान्दानमें कर्जका बार सुबूत-जब दोनों फरीकेंके यह बयान हो कि परिवार, नालिश करने की तारीख में पृथक था, तो इस सुबूत की जिम्मेदारी कि कर्ज उस वक्त लिया गया था जब परिवार संयुक्त था, उस फरीकपर होगी जो यह बयान करेगा । भोजन और पूजन की अलाहिदगी कितने ही कारणोंसे हो जाती है। किन्तु फिर भी परिवार संयुक्त परिवार ही बना रहता है। प्रताप नारायनसिंह बनाम रामकुमारसिंह 94 I. C. 9443 24 A. L. J. 513. दफा ४७७ कर्जा देनेवालेका कर्तव्य रुपया देनेवाला महाजन अपने रुपये के लिये या वह आदमी जिसके पास वापने जायदादका इन्तकाल किया हो उस जायदाद पर कब्ज़ापानेके लिये दावा करे तो इन दोनोंको यह साबित करना होगा कि कर्जा पहले का था या यह कि उन्होंने खूबही उचित जांच करके नेकनीयतीसे यह विश्वास कर लिया था कि कर्जा पहलेका है. देखो-8 Mad.75:5 Mad 337, 6 Mad. 400; 13-Mad. 51; 26 Bom, 326; 3 Bom. L. R. 898, BN. W. P. H. C. 899 28; All. 608. मगर इन दोनोंको यह साबित करनेकी ज़रूरत नहीं हैं कि कर्जा कानूनी ज़रूरतसे लिया गया था या नहीं, लेकिन यदि साबित करें तो और भी अच्छी बात होगी, 30 All. 156; 24 All 459; 28 All. 508. नीलाममें जायदादके खरीदारको यह साबित करनेकी ज़रूरत नहीं है कि खरीदनेसे पहले उसने कुछ जांच की थी या नहीं, देखो-15 I. A. 99; 15 Cal. 717.
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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