SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 641
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५.६० पैतृक ऋण अर्थात् मौरूसी कर्जा सातवां प्रकरण R. C. R.56; 6 I. A. 88; 5 Cal. 148-171; 4 Cal. L. R. 226. 238; 16 Mad. 9935. N. W. P. 89; 24 Bom. 343; I Bom L. R. 839: 31 All. 5996Mad 400; 151. A.99; 16 Cal 7173 24 W. R. C. R. 231; 25 W. R. C. R. 185. पुत्र ऐसा सुबूत इस समय भी पेशकर सकता है जब कि रुपया किसी तीसरेसे लेकर कोई कर्जा बापने अदा किया हो; देखो-महाराजसिंह बनाम बलवंतसिंह 28 All. 508; केवल इस क़दर साबित कर देना काफी नहीं होगा कि बाप फिजूल खर्च और ऐय्याश था, वल्कि उसे स्पष्टरीतिसे साबित करना पड़ेगा-30 All. 156; 8 All. 231; 6 All. 193. 23 W. R. C. R. 260; 15 I. A. 99; 15 Cal.717; 20 Bom. 534; 14 Bom. 320; 8 Mad. 75; 21 All, 238; 6 Bom. 520. बापके क़र्जा लेनेके समय जो पुत्र पैदा नहीं हुआ वह उस रेहनपर कुछ आपत्ति नहीं कर सकता जो उस कर्जेके अदा करनेके लिये किया जाय भोलानाथ खत्री बनाम कार्तिक कृष्णदास खत्री 34 Cal. 372; 11 C. W.N. 462. जब पुत्र यह सावितकरे कि कर्जेका कोई भाग अनुचित तथा बंकानूनी काम के लिये बापने लिया था तो बाकी कर्जे के लिये जायदाद जिम्मेदार रहेगी देखो-ऊपरकी नजीरें। संयुक्त खान्दान के जायज़ रेहननामे को अदा करने के लिये, संयुक्त खान्दानी जायदाद का बेचा जाना जायज़ है उसकी पावन्दी प्रत्येक साझदार पर होती है। लाल बहादुर बनाम अम्बिकाप्रसाद 52 1. A. 443. 2 0. W. N. 913. (1925) M. W. N. 852; 47 A. 795; A. I. R. 1925; P.C. 264 (P.C.) जब किसी संयुक्त हिन्दू परिवार के पितापर मालगुजारीके .आखिरी निर्णीत बैटवारेकी पाबन्दी होती है, तो उसकी पाबन्दी पुत्रपर उसी प्रकार होगी, चाहे पुत्र का नाम मालगुज़ारी के कागजोंमें न चढ़ा हो । गजाधरसिंह बनाम हरीसिंह L. R. 6 A. 237; 23 A. L. J. 291; 47 All. 416; 87 I. C. 647; L. R. 6 A. 95 ( Rev.) A. I. R. 1925 All. 421. केवल इस बात पर, कि हिन्दू पुत्र के लिये यह पवित्र प्रतिबन्ध है कि वह अपने पिता का ऋण चुकाये, ऐसा रेहननामा जो कानूनी प्रावश्यकता या पहिले का कर्ज चुकाने की वजह की कमी के कारण नाजायज़ हो जायज नहीं हो सकता । वसीधर बनाम बिहारीलाल 2 0 W. N. 369; 120.L.J.35989 I. C.67;A.I. R. 1925 Oudh. 626.
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy