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________________ दफा ४६१-४६३] दायभाग-लॉ ५५३ यह विचार कि संयुक्त खान्दानमें, व्यक्तिगत नामकी जायदाद भी संयुक्त खान्दानकी ही जायदाद होती है, उस दशामें जबकि खान्दान केवल पिता पुत्र का हो और दायभागलॉ के अधीन हो, नहीं माना जाता। इस बातके निर्णय में कि आया जायदाद स्वयं उपार्जित है, इसपर ध्यान दिया जाता है कि वह रकम जिससे वह खरीदी गई है कहांसे प्राप्त हुई है। इस बातके सुबूत न होनेपर, कि उस सदस्यके पास कोई पृथक फण्ड है, यह माना जाता है कि वह संयुक्त खान्दानकी जायदाद है--यशोदा सुन्दरी बनाम पालमोहन 42 C. L. J. 486. दफा ४६२ लड़के अपनी पैदाइशसे कोई हक़ नहीं प्राप्त करते ___ मिताक्षरालॉ के अनुसार प्रत्येक पुत्र कुल पैतृक जायदादमें अपनी पैदाइशसे वापके साथ बराबरका हक़ प्राप्त कर लेता है, और बापके मरने के बाद लड़का सरवाइवरशिपके अनुसार बापकी छोड़ी हुई जायदाद लेता है न कि उसके वारिसकी तरह। दायभागलों के अनुसार लड़के पैतृक जायदादमें अपनी पैदाइशसे कोई भी हक़ नहीं प्राप्त करते, उनका हक़ बापके मरनेके पश्चात् पैदा होता है बापके मरनेपर लड़के उतनीही जायदाद पाते हैं जितनी कि बाप छोड़ गया हो चाहे वह जायदाद मौरूसी हो या उसकी अलहदा कमाईकी हो इस स्कूलमें लड़के सरवाइवरशिपके अनुसार बापकी जायदाद नहीं पाते बल्कि वह बतौर वारिसके पाते हैं। बाप और लडकोंके बीच में कोपार्सनरी नहीं होती। हिन्दूला के कुछ लेखकोंकी राय है कि बाप और लड़के पैतृक जायदादमें मुश्तरका हक़ प्राप्त करते हैं और इसलिये वह कोपा. सनरीकी हक़दारीके भीतर आ सकते हैं मगर यह बात पूरे तौरसे तय नहीं हुई है कि कहां तक यह बात इस बङ्गाल स्कूल में माननीय होगी। दफा ४६३ पैतृक जायदादके इन्तकाल करने में बापको पूरा अधिकार है ___ जब दायभागलॉ में यह बात मानी गयी है कि लड़के अपनी पैदाइशसे पैतृक जायदादमें कोई हक़नहीं प्राप्त करसकते इसीलिये कुल पैतृक जायदादको बाप अपनी मरज़ीके अनुसार बैंच सकता है, रेहन कर सकता है, दान कर सकता है, वसीयत कर सकता है, और दूसरे तरीकोंसे भी दे सकता है चाहे वह जायदाद मनकूला हो या गैर मनकूला हो । मौरूसी जायदादमें वापके वैसेही अधिकार होते हैं जैसे उसको अपनी अलहदा जायदादमें, देखोरामकिशोर बनाम भुवनमयी (1859) Beng. S. D. A. 229, 250-251. देवेन्द्र बनाम बृजेन्द्र 17 Cal. 846. यही कायदा वहांपर भी लागू होगा जहां पर जेठे लड़केका हक़ जायदाद पानेका माना गया हो, देखो-उदय बनाम 70
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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