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________________ दफा ४EJ मुनाफेका इन्तकाल नीलाम हो सकती है, देखो-दीनदयाल बनाम जगदीप नरायन 3 Cal. 198) 4 I. A. 247 ऊदाराम बनाम रानू 11 Bom. H. 0 76. अगर कोई डिकरी कर्जदारकी ज़िन्दगीमें अदालतसे हो जाय और उस डिकरीमें कर्जदारकी जिन्दगीमें मुश्तरका खान्दानकी जायदादका उसका हिस्सा कुर्क न कराया गया हो वक्ति कर्जदारके मरनेके बाद कुर्क कराया गया हो तो फिर उस डिकरीमें मुश्तरका खान्दानकी जायदाद कुर्क नहीं हो सकती और म नीलाम हो सकती है। देखो-सूर्य वंशीकुंवर बनाम शिवप्रसाद 5 Cal. 148, 174; 6 I. A. 88, 109 बिट्टलदास बनाम नन्दकिशोर 23 All. 109%, अगर बापपर डिकरी हो और बापकी जिन्दगीमें मुश्तरका जायदाद कुर्क नहीं कराई गयी हो तो बापके मरनेपर बापकी छोड़ी हुई जायदाद जब उसके लड़कोंके पास भावेगी तो उस डिकरीमें वह मुश्तरका जायदाद बापके मरने के बाद भी अदालतसे कुर्क और नीलाम हो सकेगी। कारण यह है कि बाप के कर्जेके देनेके पाबन्द और जिम्मेदार लड़के माने गये हैं इतनाही नहीं वक्लि बापके कर्जेके लिये लड़कोंकी जायदाद भी कुर्क और नीलाम हो सकती है डिकरी चाहे सिर्फ बापके नामपर हो । अगर बापके ऊपर किसी ऐले कर्जेकी डिकरी हो गयी है जो कानूनन नाजायज़ थी तो उस सूरतमें बापके मरनेके बाद न तो बापकी मुश्तरका जायदादहीपाबन्द है और न लड़कोंकी जायदाद अर्थात् ऐसी डिकरीमें मुश्तरका जायदादका कोई हिस्सा कुर्क नहीं हो सकता और न नीलाम हो सकता है। यही कायदा दादा और पोतेके बीचमें होगा। उदाहरण-जय, और विजय दोनों मुश्तरका खान्दानके मेम्बर हैं दोनों भाई हैं। तथा मिताक्षरालॉ को मानते हैं । लक्षमणको एक डिकरी अदालतसे जयके ऊपर मिली, लक्षमणने उस डिकरीमें जयका हिस्सा जो मुश्तरकाजाय.' दादमें था कुर्क कराया, कुर्क होनेके बाद और नीलाम होनेसे पहिले जय मर गया तो ऐसी सूरतमें वह कुर्क किया हुआ हिस्सा नीलाम हो सकता है। और अगर जायदादकी कुर्कीके पहिले मर जाता तो पीछे जयका हिस्सा जो मुश्तरका खान्दानकी जायदादमें था डिकरीमें कुर्क नहीं हो सकता और न नीलाम हो सकता । कारण यह है कि जयके मरतेही उसका हिस्सा सरवाइवरशिपके हक़के अनुसार उसके भाई विजयको मिल जाता और उस वक्त वह जायदाद विजयकी हो जाती। पुत्रने तामीली नीलामका विरोध इस विनापर, किया कि कर्ज जिसकी बिनापर नालिश कीगई थी अनावश्यक था- गजाधर पांडे बनाम जदुपीर पांडे 47 All. 122; 85 1. C. 31; A. I. R. 1925 All. 180. डिकरीका तामील न होना-किसी हिन्दू हिस्सेदारके विरुद्ध प्राप्त हुई डिकरीकी उसकी मृत्युके पश्चात्, संयुक्त परिवारकी जायदादपर, तामील
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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