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________________ दफा ४४८] मुनाफेका इन्तकाल ज़िम्मेदार मुश्तरका जायदाद रहती है। मतलब यह है कि जब किसी परिवार में सिर्फ बाप और उसके लड़के हों, या दादा और उसके पोते हों, या बाप और उसके लड़के, पोते हों तो ऐसी सूरतमें बाप और दादा अपने लड़कों और पोतोंका हिस्सा तथा अपना हिस्सा बेंच सकता है, रेहन कर सकता है। लड़कों और पोतोंकी मंजूरीकी ज़रूरत नहीं होगी। . हिसाव भी इन्तकालका प्रमाण हो सकता है-पिता और उस व्यक्तिके बीचका हिसाब, जिसके हकमें इन्तकाल किया गया है इन्तकाल करनेका प्रमाण है किन्तु यदि मुद्दाअलेह किसी दूसरे दस्तावेज़को पेश करना चाहे, तो उसपर विचार किया जा सकता है और यदि उस दस्तावेज़के दर्ज रक्रम से कर्जके सम्बन्धमें कोई सन्देह हो, तो इन्तकाल अस्वीकार किया जा सकता है-रामरेख बनाम रामसुन्दर L. R. 6 A. 128; 86 I. C. 834, A. I. R. 1925 All. 295 (2). पिता द्वारा किये हुये इन्तकालका विरोध बिना कर्जको गैर कानूनीया असभ्य साबित किये हुए ही किया जा सकता है, यदि वयनामा किसी तामील में या किसी पहिलेके कर्जके सम्बन्धमें न हो-बल्देव बनाम भगवान मिश्र A. I. R. 1925 All. 241 (1). जब किसी पिताके खिलाफ, जो किसी संयुक्त हिन्दू खान्दानका मेनेजर हो, कोई डिकरी दी जाय, तो इसके पहिले, कि उसकी तामील परिवारकी संयुक्त जायदादपर हो, यह आवश्यक है कि उस डिकरीसे यह प्रकट हो कि वह पिताके खिलाफ, बहैसियत मेनेजर व प्रतिनिधि खान्दान पास कीगई है। यह आवश्यक नहीं है कि डिकरीमें इस प्रकारकी बात बिल्कुल खुलासा होनारूमल मूलचन्द बनाम जगतमल थारूमल A. I. R. 1925 Sind. 288. यदि पिताने स्वतन्त्र रीतिपर, खान्दानका कर्जा चुकानेके लिये रेहन किया हो. तो वह रेहनकी रकम संयुक्त खान्दानकी जायदादसे वसूलकी जा सकती है-सीतलबक्स शुक्ल बनाम जगतपालसिंह 120. L.J. 114; 86 I. C. 693; A. I. R. 1926 Dudh 394. घरकी मरम्मत--घरकी मरम्मतमें जो खर्च हो, वह कानूनी आवश्य कताके अन्दर है। किन्तु इस प्रकारकी दुरुस्तीका पूरा हिसाब रखना बहुत कठिन है। ऐसी अवस्थामें केवल इस बातकी जांच कर लेना कि घरकी दुरुस्तीकी आवश्यकता है और उसकी मरम्मत कराई जा रही है तथा उसमें रुपया लगाया जा रहा है काफी है-सालिकराम बनाम मोहनलाल 7 Lah. L.J. 470; 90 I. C. 1438 26 Punj. L. R 708;A.I.R.1925 Lah.407. ___ उदाहरण-(१) ऐसा मानो कि जय और विजय दो हिन्दू भाई हैं मुदतरका खान्दानके मेम्बर हैं और संयुक्त प्रान्तमें रहते हैं जहांपर मिता.
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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