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________________ दफा ४४६-४४७] मुनाफेका इन्तकाल हालका एक मुकदमा देखो-मोतीलालके कब्जे में मौरूसी जायदाद थी उसने बालकृष्णको गोद लिया उसी समय उसने एक वसीयत लिखा जिसमें यह भी लिखा कि "श्रीउत्तर नारायणजीके मन्दिर में दीपक जलाने के लिये २०) रु० वार्षिक दिया जाया करे" कुछ दिन बाद वह मर गया दत्तक पुत्रने रु० देना बन्द कर दिया तब मन्दिरके मेनेजरने तीन वर्षके बनाया की नालिशकी अदालतने वसीयतके आधारपर दावा डिकरी किया अपीलमें फैसला बहाल रहा, दत्तक पुत्रने बम्बई हाईकोर्टमें अपीलकी । अपीलांटकी तरफसे बम्बई हाईकोर्टके सुप्रसिद्ध वकील पं० पद्मनाम भास्कर सिंगणेने बहसमें कहा कि मस्तरका हिन्द्र परिवारका कोई कोपासनर वसीयत नहीं कर सकता इस मामले में जब मोतीलालने बालकृष्णको गोद ले लिया तो वह दत्तक पुत्र कोपार्सनर होगया ऐसी दशामें वसीयत करनेका हक ही नहीं रहा हाईकोर्टने यह बात मानी और अपील डिकरी किया मन्दिरके मेनेजर का दावा खारिज हुआ, देखो-बालकृष्ण मोतीराम गजर बनाम भीउत्तर नारायणदेव 21 Bom. L. R. 225. .. अगर किसी कोपार्सनरके पास उनकी कोई दूसरी अलहदा जायदाद है तो वह उसे अपनी मरजीके अनुसार जिसको जी चाहे दे सकता है। देखो दफा ४१८, ४१६. पुत्र द्वारा मंसूखीकी नालिश-जायदाद पिताके हिस्से में दीगई और बाकी सम्पत्ति पुत्रके हिस्से में-आया उचित है-तय हुआ कि अनुचित हैघरदाराजलू चेट्टी बनाम वेलायुद्ध उदायन 22 L. W. 230; 90 I. C. 7439 A. I. R. 1925 Mad. 1160. दफा ४४७ मुश्तरका जायदादका बेंचना या रेहन करना (१) बम्बई और मदरास प्रान्तमें जैसाकि मिताक्षरालाका अर्थ माना गया है उसके अनुसार उक्त दोनों प्रान्तोंमें हर एक कोपार्सनर मुश्तरका खान्दानकी जायदादका मुश्तरका लाभ, दूसरे कोपार्सनरोंके बिना पूछे कीमत के बदलेमें बेंच सकता है, रेहन कर सकता है और किसी दूसरे तरीक्रेपर भी इन्तकाल कर सकता है। देखो--तुकाराम बनाम रामचन्द्र 6 Bom. H. C. A.C. 247. बासुदेव बनाम बेंकटेश 10 Bom. H. C. 139. फकीराया बनाम चानप 10 Bom. H. C. 162. एय्यागरी बनाम एय्यागरी 25 Mad. 690, 703. लक्षमण बनाम रामचन्द्र 5 Bom. 48, 61; 7 1. A. 181, 195. सूर्यवंशीकुंवर बनाम शिवप्रसाद 5 Cal. 148. 1663 6 I. A.88, 101,102. बालगोविन्ददास बनाम नारायनलाल 15 All 339,351; 20 1.A.116,125. (२) बङ्गाल और संयुक्त प्रान्तमें जैसाकि मिताक्षगलॉका अर्थ माना गया है उसके अनुसार उक्त दोनों प्रान्तोंमें कोई भी कोपार्सनर मुश्तरका
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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