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________________ मुश्तरका खान्दान [छठवां प्रकरण के लिए यह देखा जायगा, कि वह व्यवसाय कैसा था, उसका फैसला उसके परिणामपर न होगा, रणचन्द्रसिंह बनाम जङ्गबहादुरसिंह 90 I. C. 553. पिता द्वारा किये हुए, संयुक्त हिन्दू खान्दानकी जायदादके रेहननामे में केवल दस्तावेज़के द्वारा क़ानूनी आवश्यकताका प्रदर्शन काफ़ी नहीं है । दस्तावेज़ शहादतमें पेश किया जा सकता है, किन्तु महज़ उसका सुबूत कानूनी आवश्यकताके साबित करने के लिये काफ़ी मुबूत नहीं है। राजवन्त बनाम रामेश्वर 12 0. L. J. 235; 2 O. W. N. 225; 87 I. C. 180; A. I. R. 1925 Oudh 440. आवश्यकता-सिलसिलेवार हानिको रोकना--आवश्यकता है-सूरजनारायन बनाम गुरुचरनप्रसाद 91 I. C. 495; A. I. R. 1928 Oudh 743. किसी मिले हुये हिस्सेकी खरीदारी और उसके लिये रेहननामा खानदानपर लाज़िमी है, बेनीमाधोसिंह बनाम चन्द्रप्रसादसिंह 6 P L. J.2333; 83 I.C. 603; A. I. B. 1925 Patya 189. खान्दानी जायदादका बयनामा, जो भावी और सिलसिलेवार नुकसान के दूर करनेकी गरज़से किया गया हो, एक ऐसा बयनामा है जो खान्दानी जायदादके फ़ायदेके लिये किया गया है और उसकी पाबन्दी है। 'आवश्यकता' और 'खान्दानी फायदा' एक दूसरेके विरुद्ध नहीं है। किस चीज़से 'खान्दानी फायदा' है, यह हर सूरतमें परिस्थितिके लिहाज़से अलाहिदा अलाहिदा होता है, सूरजनारायन बनाम गुरचरन प्रसाद 20 W. N. 904; A. I R. 1925. Oudh 743. पिता द्वारा हक़सफ़ाके लिए गैर जमानती कर्जका लिया जाना कानूनी आवश्यकता होती है--विश्वनाथराय बनाम जोधीराय A. I. R. 1925 Nag. 160 (2). 'आवश्यकता'--किसी हिन्दू संयुक्त परिवारके मैनेजर द्वारा इन्तकाल के जायज़ होनेके सुबूतमें यह आवश्यक है कि पारिवारिक आवश्यकता या लाभ प्रमाणित किया जाय । वाक्य 'आवश्यकता' के अर्थमें सख्ती न की जानी चाहिये । जबकि मैनेजरने किसी घरको, कम कीमतपर इस गरजसे खरीदा, कि वह उसे ऊंची कीमतपर बेचकर, उन क़र्जीको, जो ऊंचे सूदपर हैं, अदा करेगा, और जबकि उन कजोंके अदा करनेके लिये कोई अन्य सूरत न थी, इस अवस्थामें यह खरीद पारिवारिक लाभके लिये समझी जायगी और उसकी बिनापर हुए कर्जकी पाबन्दी परिवारपर होगी। रवीलाल बनाम रघुनाथ मूलजी 92 I. C. 378. कानूनी आवश्यकता-वह कार्य, जिसके लिये, 'कानूनी आवश्यकता या 'खान्दानी फायदा' समझा जा सकता है, अवश्य ऐसा होना चाहिये, जो
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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