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________________ ५०० wwwwwwwwwwwwimmam मुश्तरका खान्दान [छठवां प्रकरण मेनेजर द्वारा किये हुये किसी मुश्तरका खान्दानके इन्तकालमें दूसरे सदस्योंकी रजामन्दी केवल एक किसी आवश्यकताकी शहादत है इस सूरत में उनके खिलाफ इस्टोपलका प्रयोग किया जा सकता है, मु० काल्का देवी बनाम गङ्गाबक्ससिंह 12 0. L. J. 306; 88 I. C. 127; A. I. R. 1925. Oudh435. . 'इस्टापुल' के लिये देखो दसवां प्रकरण । इसका मूल अर्थ है कि 'हन बन्द होगया। मेनेजर-किसी खान्दानका ऐसा मेनेजर भी, जो खिलाफ मुश्तहक वाकई काबिज़ है कानूनी आवश्यकताके लिये खान्दानी जायदादका इन्तकाल कर सकता है। बालिग सदस्योंकी रजामन्दीकी आवश्यकता नहीं है बल्कि वह कानूनी आवश्यकताके कारण मानली जाती है। .. ऐसे तमाम वाक्यातोंमें उसको जिसके हकमें इन्तकाल किया गया है, कानूनी आवश्यकता साबित करनी होती है। वह इसे या तो बतौर वाकये के साबित कर सकता है या यह कह सकता है कि उसने इस बातके इतमीनान करनेके लिये कि कानूनी आवश्यकता वर्तमान थी ईमानदारके साथ सब मान्य तरीकोंसे अमल किया है, नारायणदास बनाम कामतामल 88.I.C. 916. _पैतृक जायदादके बेचने के लिये, यह मान्य कारण नहीं है कि वह जायदाद बहुत दूर पर थी या ऐसी आबो हवा में वाक़ थी जहां मलेरियाका प्रकोप रहता है। जबकि जायदादके बेचने की कोई मजबूरी न थी और जायदादके निकल जानेका कोई खतरा न था, किन्तु उस जायदादकी बिक्रीकी रकम खान्दानकी लागतमें लगाई गई, तो वह इन्तकाल बहाल रखा गया, भागवत बनाम आनन्दराव 86 1. C. 515; A. I. R. 1925 Nag. 302. मुश्तरका खान्दान-इन्तकाल-चचा बतौर मेनेजर-अधिकारकी सीमा, मु० रमेशर बनाम कल्पोराम 84 IC. 84; A.I.R. 1929 All. 538. न ज्यादा न कम जायदादका इन्तकाल करना-किसी खान्दानके मेने जरके लिये यह सम्भव नहीं है कि वह ठीक उतनीही रकमका इन्तकाल करे, जितनीकि कानूनी प्रावश्यकता हो, किन्तु फिर भी यह उचित नहीं है कि यह आवश्यकतासे बहुत अधिकका इन्तकाल करे । एक ४००) रु० के इन्तकालमें ८०) क़ानूनी आवश्यकताके बाहर समझे गये । यह रकम इतनी कम न समझी गई कि उसके बाबत कुछ ख्याल न किया जाय । क्रमशः दस्तावेज़ मंसूख कर दिया गया और मुद्दईको ३२०) दिलाये गये। मातादीन तिवारी बनाम सूरजबलीसिंह 83 I. C. 32; A. I. R. 1923 All. 522. काबिज़ मेनेजर-उसके द्वारा संयुक्त परिवारकी जायदादका बयनामा यदि दूसरे सदस्योंके अधिकार भी, उस बयनामेके अनुसार समाप्त हो जाते
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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