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________________ बफा ४१६] अलहदा जायदाद, ५७५ लातीहै । और जो जायदाद नम्बर ४ में कही गया है कि कोपर्मनरकी कमाई का धनहै इसके विषयमें हमेशा यह सवाल पेदा होसकताई कि वह जायदाद उसकी अग्ना कमाई हुई अलहदा मानी जामकती है या नहीं ? ऊपर नम्बर ५ में जो जायदाद कही है उसके विषयमें भी यही समझना चाहिये । अपनी कमाई हुई जायदाद उस जायदादको कहते है जिसे किसी हिन्दूने अपने मुश्तरका खानदानकी नायनादकी सहायता बिना कमाई हो । ऊपर जायदाद शब्दका अर्थ मनकूला और गैरमनकूला दोनों जायदादोंसे समझना । दका ४१९ अलहदा कमाई __आगर किसी मुश्तरका खानदान के किसी आदमीने ऐसी कोई अलहदा जायदाद प्राप्तकी हो जो उसने अकेले अपने उद्योगसे प्राप्त की हो और जिसे उसने मुश्तरका खानदानकी जायदादकी सहायता बिना प्राप्तकी हो तो फिर उस जायदादकी आमदनी भी उस आदमीकी अलहदा कमाई मानी जायगीदेखो 27 Mad. 228;सोमा सुदराबनाम गंगा 28 Mad. 385; जगमोहनदास बनाम मंगलदास 10 Bom. 528; घरासत से मिली जायदाद-ऐसी जायदाद जो किसी मुश्तरका खानदान के व्यक्तिको नज़दीकी होने के कारण प्राप्त हुई हो मुश्तरका खानदान की ऐसी जायदाद नहीं समझी जा सकती, जिसके सम्बन्धमें खानदान का मेनेजर नालिश कर सके या उसके खिलाफ नालिश की जा सके, जिम्की पाबन्दी खानदानके दूसरे सदस्योंपर हो । हंसलाबक्स बनाम राजबक्ससिंह A. I. R. 1925 Oudb 75. मुश्तरका खानदान-एक हिस्सेदार द्वारा किया जाने वाला व्यवसाय मुश्तरका खानदान का व्यवसाय नहीं समझा जाता। मोथाराम दौलतराम बनाम पहलाद राय गोपाल दास । A.I R. 1925 Sindn. I09. मुश्तरका खानदान-हिस्सेदार - हिन्दु खानदानके व्यवसायके सम्बन्ध में एक हिस्सेदार पंचायत के सामने मामले को नहीं बयान कर सकता और दूसरे हिस्सेदारों को पाबन्द नहीं बना सकता । पंचायत के सामने किसी विषय को पेश करना खानदानी व्यवसाय का साधारण काम नहीं है। गेंदामल बनाम फर्मा निहालचन्द छज्जूमल 84 I. C. 726; 6 Lal. L. J. 502; A.I R. 1925 Lah. 261. जब किसी मुश्नरका खानदान का कोई व्यक्ति इसबानका दावा करता है कि अमुक जायदादको उमने स्वयं अपने श्रम और धनमे उपाजित किया है तो उपका यह कर्तव्य होताहै कि वह यह साबित करे कि उसने उस जायदाद के उपार्जिन करने में पैतृक जायदानमे सहायता नहीं ली। जब करठ हिन्दू भाइयों ने कोई जायदाद आपस में मिलकर कमाया हो और इसके खिलाफ़ कोई प्रमाण न हो तो उनके कब्जे में वह मश्वरका जापदाद भी नाम पर होगी और उनकी औलाद उसपर जन्मसे ही अधिकार रसगी । पदि इस
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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