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________________ गा दफा ४०-४२] गार्जियन एण्ड वाई ४०५ व्यक्निके साथ होजानेपर जो अदालतकी रायमें उसका वली बननेके लिये अयोग्य नहीं है। (ई) यदि नाबालिग़का पिता वली बननेके अयोग्य रहाहो तो उसकी अयोग्यता दूर होनेपर या अगर अदालतने पिताको वली बननेके अयोग्य समझा है तो अदालतकी रायमें उसकी अयोग्यता न रहनेपर; (२) नाबालिग़की जायदादके वलीके अधिकार निम्न प्रकारसे समाप्त होते हैं:(ए) उसकी मृत्युपर या उसके हटाये जाने या बरीकर दिये जाने पर; (बी) नाबालिग़की जायदादके देखरेखका भार कोर्ट आफवाइस द्वारा लेलिया जाने पर; (सी) नाबालिग़के बालिग़हो जाने पर, (३) जब ऊपर दिये हुए किसी भी कारणसे वलीके अधिकारोंका अन्त होजावे तो अदालतको अधिकार है कि वह उससे या उसकी मृत्युके पश्चात् उसके उत्तराधिकारीसे नाबालिग़की जायदादका कब्ज़ा लेसके या नाबालिग़की पिछली या मौजूदा जायदादका हिसाब जो उसके कब्ज़ेमें रहाहो मांग सके: (४) जबकि अदालतकी आज्ञानुसार वलीने जायदाद या उसका हिसाबदे दियाहो तो अदालत वलीको उसकी ज़िम्मेदारीसे बरीकर देगी परन्तु यदि भविष्यमें कोई धोखादेही निकलेगी तो ऐसी धोखा देहीसे वली बरी नहीं समझा जावेगा। -दफा ४२ मरे हुए, हटाये हुये वलीके उत्तराधिकारी (वारिस ) कीनियुक्ति . जबकि अदालतसे नियुक्त या घोषित किया हुआ पली बरी कर दिया जावे या वलीको उस कानून द्वारा जो नाबालिग पर लागू है बली रहने का अधिकार न रह जावे, या कोई ऊपर दिया हुआ वली अथवा वसीयतनामा या दस्तावेज़ द्वारा नियुक्त किया हुआ वली मर जावे या हटा दिया जावे तो अदालत स्वयं ही या दरख्वास्त दिये जाने पर दूसरे प्रकरणके अनुसार किसी दूसरे व्यक्तिको नाबालिगकी ज़ात या जायदाद या दोनोंका वली उस सूरतमें नियुक्त कर सकती है जबकि नाबालिग उस समय नाबालिग्रही होवे।
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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