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________________ दफा ३५७-३५८] नाबालिगी और वलायत ३६७ खारिज हो । सबब यह कहा गया कि ऐसा मुआहिदा पूर्व से नाजायज़ था इस लिये न तो अजय, जय की जिमीदारी पाने का दावा कर सकता है और न जय इस बात का दावा कर सकता है कि उसकी जिमीदारी अजय को दिला दी जाय। पिता के ऋण की अदाई के लिये वलीद्वारा मुआहिदा देखो, लालचन्द बनाम नरहर A. I. R. 1926 Nag. 31 (1) नाबालिग़ पर, उसके सम्बन्ध के फैसले की उसी प्रकार पाबन्दी होगी जैसी कि उसपर बालिग होने की हालत में होना चाहिये, यदि वली की बेईमानी सम्पूर्ण असावधानी या साजिश न साबित हो। रामेश्वर बक्ससिंह बनाम मुसम्मात रिधा कुंवर 87 I. C. 238; A. I.R. 1925;Oudh. 633. .. दफा ३५८ जो काम वलीकी हैसियतसे वलीने न किया हो जब किसी अज्ञान के वली ने कोई काम अज्ञान के लिये वली की हैसियत से नहीं किया हो तो वह अज्ञान को पाबन्द नहीं करेगा और अगर वली ने अपने अधिकार के साथ वली की हैसियत से किया हो तो अज्ञान को पाबन्द करेगा। अगर कंट्राक्ट करने के वक्त या दस्तावेज़ लिखने के वक्त अज्ञान का नाम नहीं लिया गया हो या नहीं लिखा गया हो तो इस बात से पूरा सुबूत यह नहीं मान लिया जायगा कि वह काम अज्ञान के लिये नहीं किया गया था । यह बात किवह काम अज्ञानके लिये किया गयाथा कि नहीं प्रत्येक मुकदमे में अलहदा अलहदा देखा जायगा , कुछ तो दस्तावेज़ के शब्दोंसे और बाकी उस वक्तके स्थिति और इरादेके सुबूतसे, देखो इन्दचन्द्र बनाम राधेकिशोर 19 Cal. 507; 19 I. A. 90; नाथू बनाम बलवंतराव 27 Bom. 390. - उदाहरण-कृष्ण, नामका एक आदमी मरा उसने अपनी विधवा राधा और अपने तीन पुत्र अशान छोड़े जिनके नाम थे जय, अजय, विजय । कृष्ण के मरने पर राधा विधवा ने पति की कुल जायदाद बहैसियत तीनों लड़कों के वलीके कब्ज़ा किया। और इन्तज़ाम करने लगी। कुछ अरसे बाद किसी सबब से एक पुरुष कुमुद ने अदालत से प्रार्थना की कि मा को रद्द करके वह लड़कों का वली बनाया जावे । अदालत ने सब बातें सुनकर कुमुद को वली नियत कर दिया। राधा विधवा ने कुमुद को जायदाद का चार्ज देने से पहिले अज्ञान की कुछ जायदाद एक हज़ार रुपया पर बेच दी थी, श्री हर्ष ने जायदाद खरीद की थी। माने जो जायदाद बेची थी वह बतौर अपने माल के कहकर बेची थी, नकि अज्ञान के माल के । राधा विधवा के पति कृष्ण के क्ररजे की एक डिकरी उस जायदाद पर थी। राधा विधवा ने एक हज़ार रुपयों में से आधे तो उस डिकरी में अदा किये जो जायदाद पर थी और
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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