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________________ ३१२ दत्तक या गोद [चौथा प्रकरण wwwwwwwww. उदाहरण - द्वामुष्यायन गोद लेनेके बाद सेठ रामप्रतापके औरस दो पुत्र पैदा होगये अब उनकी जायदाद पहिले पांच भागोंमें बांटी जायगी और उसमेंसे एक भागका आधा द्वामुष्यायनको तथा सवा दो, दो, भाग प्रत्येक औरसपुत्रोंको मिलेंगे ऐसा विभाग बंगाल धर्मशास्त्र के अनुसार होगा, और जब बनारसधर्मशास्त्रके अनुसार उनकी जायदादका विभाग किया जायगा तो पहिले सेठ रामप्रतापकी जायदाद सात भागोंमें बांटी जायगी। उसमें से एक भागका आधा भाग द्वामुष्यायनको मिलेगा और सवा तीन, तीन, भाग प्रत्येक दोनों औरस पुत्रों को। इसी तरह पर जब बम्बई अथवा मदरासके धर्मशास्त्रानुसार बटवारा किया जायगा तो पहिले उनकी जायदाद नव भागोंमें बांट कर एक भाग का आधा भाग द्वामुष्यायन को मिलेगा तथा सवा चार चार भाग हरएक दोनों औरस लड़कोंको । एवं जितने लड़के होंगे उन सबका विभाग इसी क्रमसे होगा। ऊपर ननशेमें सात औरसपुत्रोंके पैदा होनेपर जो भाग द्वामुष्यायन को स्कूलोंके अन्तर्गत मिलना चाहिये दिखलाया गया है। अगर ज्यादा पुत्र हों तो इसी तरहपर समझ लेना। दफा २९० विभागका नतीजा द्वामुण्यायन दत्तकको क्यों ऐसा भाग दियागया है ? इस विषयमें मुझे कोई प्रमाण नहीं मिला मुमकिन है कि कोई हो मगर मालूम ऐसा होता है कि जब उसे दोनों बापोंकी जायदाद पानेका अधिकार दिया गया था तो औरस पत्रों की मौजदगीमें कम अधिकार कर दिया गया अगर यह मानो कि दोनों खानदानों में द्वामुष्यायन के बाद एक औरस पुत्र पैदा होगया तो द्वामुव्यायन को असली बापकी जायदाद का तीसरा हिस्सा मिला तथा गोद लेनेवाले पिता की जायदाद का बङ्गाल स्कूल में पांच हिस्सोंमें एक हिस्सा मिला । असली पिताकी जायदाद पानेमें हमेशा द्वामुष्यायन को औरससे आधा मिलेगा गोद लेनेवाले पिताकी जायदादमें हर धर्मशास्त्रके अन्तर्गत भिन्नता होगी जैसाकि ऊपरके नक्शे में बताया गया है । देखो दफा २८६. मयखने इस विषयका विवेचन करते हुये कहा है कि जब द्वामुप्यायन दत्तक देनेके बाद दोनों खानदानों में असली लड़के पैदा हो जाये तो दत्तक पुत्रको सिर्फ गोद लेनेवाले बापकी जायदादमें भाग मिलना चाहिये। वह भाग उसी तरहपर मिलना चाहिये जोसादे दत्तकमें जैसा दत्तकके बादौरस पुत्र पैदा होने की सूरतमें मिलता देखो दफा २७० -२७१ व्यवहार मयूख अ० ४-५-२५ द्वामुष्यायन दत्तक होनेके बाद जब एकही खानदानमें औरस पुत्र पैदा हों तो क्या सूरत होगी? मालूम होता है कि उसे एक बापकी सब और एककी उसी क़दर जायदाद मिलेगी जिस क़दर कि ऊपर कहा जाचुका है मगर इस बातपर मयूख ने कुछ नहीं राय दी है।
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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