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________________ दत्तक या गोद [चौथा प्रकरण ही होता है, नियुक्त पुरुषका नहीं; वह पुत्र नियमसे बीजवाले पुरुषको नतो पिण्ड दान कर सकता है और न उसका धन पा सकता है। मनुने कहा है कि जब पुरुष इस प्रतिज्ञाके साथ कि-इस स्त्रीमें पैदा हुआ पुत्र दोनोंकी सम्पत्ति पानेका अधिकारी होगा और दोनोंका पिण्ड देसकेगा; बीजवाले पुरुषद्वारा नियोग कराई गई हो; तो उससे जो पुत्र पैदा होगा वह दोनोंका मालिक होगा ऐसा महर्षियोंने देखा है पुनः मनुने यह कहा है कि अगर ऐसी प्रतिज्ञा न की गयी हो कि इस स्त्रीसे पैदा हुआ पुत्र दोनोंका होगा, तो वह पुत्र केवल क्षेत्र के स्वामीका ही होगा और उसीकी जायदाद पावेगा क्योंकि बीजसे योनिकी प्रधानता मानी है जैसे गौ, घोड़ा, आदिमें । यहांपर नियोग वाग्दत्ताके विषयमें यानी जिस कन्याकी सगाई होचुकी हो और विवाह न हुआ हो उसके विषय में कहा गया है क्योंकि अन्य स्त्रीमें नियोग मनुजीने निषेध किया है। कहा है कि-अच्छी तरहसे नियुक्त की हुई स्त्री देवर वा सपिण्डसे वांच्छित सन्तान को प्राप्त होवे जिसके पुत्र न हों-विधवामें नियुक्त पुरुष अपने शरीरभरमें घृतको लगाकर मौन होकर रात्रिमें एक पुत्र पैदा करे दूसरा कदापि न करे। इसतरह पर नियोगविधिको कहकर आगे उसका खण्डन करते हैं, मनुजी कहते हैं कि द्विजाति अन्यके साथ विधवा स्त्रीका नियोग न करें, क्योंकि अन्य पुरुषके संग नियोग करनेवाले सनातन धर्मको नष्ट करते हैं। विवाहके मंत्रोंमें कहीं भी नियोग नहीं कहागया,और न विवाहकी विधिमें विधवाका पुनः विवाह कहागया है,यह पशुओंका धर्म है इसीसे विद्वानोंने निंदित कहा है। यह नियोग की पृथा 'बेन' राजाकी राज्यमें प्रचलित हुई थी, उस 'बेन' राजाने इसकी प्रथा चालई थी, बेन राजा उस समय बड़ा प्रतापी था और पृथ्वीका एक मात्र स्वामी था परन्तु काम वश उसकी बुद्धि नष्ट हो गई थी । वर्णसंकर पैदा होनेका कारण वह बना । उसके पश्चात् जो पुरुष विधवा स्त्रीमें सन्तान पैदा करनेके निमित्ति नियोग करता है उसको अच्छे जन निन्दा करते हैं। यदि यह कहा जाय कि मनु जी ने नियोग विधि और निन्दा दोनों कही हैं इस लिये एक दूसरे के विरुद्ध होगा। यह कहना ठीक नहीं है क्योंकि नियोग करने वालोंकी निन्दा शास्त्र में कही गई है, और स्त्रीको व्यभिचार कर्ममें अत्यन्त दोष हैं तथा जितेन्द्रिय होनेकी बहुत प्रशंसा सर्वत्र कही गई है। मनुजी ने कहा है कि कन्द, फल, फूल खाकर चाहै शरीरको नाश कर देवे मगर पति के मरनेके पीछे दूसरे पुरुषका नामतक न लेवे, इस वचनसे दूसरे पुरुषका निषेध स्पष्ट होता है फिर भी मनुजी कहते हैं किविधवा स्त्री जबतक जीती रहे तबतक पतिव्रताओंके सर्वोत्तम धर्मकी आकांक्षा करती रहे । हज़ारों आबाल ब्रह्मचारी रहकर बिना सन्तान पैदा किये हुए भी स्वर्ग को गये हैं, इसीतरह पर पतिके मरने के पीछे साध्वी स्त्री ब्रह्मचारिणी रहकर स्वर्ग में जाती हैं। जो विधवा स्त्री पुत्रके लोभ से पर पुरुष रत होती है वह इस लोकमें निन्दा को प्राप्त होती है और परलोकसे पतित हो
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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