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________________ दत्तक या गोद [ चौथा प्रकरण विधि - ततः धर्म संयुक्तं वेदपारगं ब्राह्मणं आचार्य संपूज्य वाससी कुण्डले उष्णीपञ्चाङ्गुलीयकं दत्वा वृणुयात् । इसके पीछे, धर्मके जानने वाले और चारों वेदोंके पारङ्गत ऐसे ब्राह्मण आचार्यका विधिवत् पूजन करे और उसे धोती जोड़ा, दो कुण्डल, पगड़ी और मूठी आदि देकर आगे कहे हुए वाक्यसे उसका वरण करे । ( वरण करनेका वाक्य ) સ્ફુર कृत्य --- मम अजस्त्वप्रयुक्त पैतृकऋणापाकरण वंशाभिवृद्धिपूर्वक समस्तपितॄणां शाश्वत ब्रह्मलोक निवासार्थं पुत्रप्रतिग्रह कर्मणि अमुकगोत्रं श्रमुकशर्माणं ब्राह्मणं एभिर्द्रव्यैः श्राचार्यत्वेन त्वामहं वृणे । ( श्राचार्य यह वाक्य कहे ) 'वृतोस्मि' विधि - ततः आचार्यः स्वतिपुण्याहवाचनम् रक्षाविधानस्विधाय कलशप्रतिष्ठागणेशादीन्कु लिष्टदेवं श्री विष्णुंच यथोपचारैः विधिवत्संपूज्य स्थण्डिलेशुद्धायां भूमौ दर्भैः परिसमूहनम् गोमयोदकेनोपलेपनम् खादिरेण स्फेनेनोल्लेखनम् उदकेनाभ्युक्षणम् एतानि पञ्चभूसंस्काराणि कृत्वा कांस्य पात्रेणामिमानीय वक्ष्यमाण मन्त्रेणाग्नि संस्थापयत् । बरण हो जानेपर श्राचार्य 'स्वस्ति वाचन' और 'पुण्याह वाचन' के मंत्र पढ़े। रक्षाविधान (हाथमें सूत्रको रक्षा बांधना करके विधिवत् कलशस्थापन करे । गणेश, बरुण, गौरी आदि देवताओं तथा कुलके इष्ट देवता एवं विष्णु भगवान का विधि पूर्वक यथोचित पूजन करे । पवित्र स्थान में यज्ञकी एक सुन्दर वेदी बनावे और पंचभू संस्कार' से शुद्धकर क्रांस पात्र अनि मंगवाये चे के मन्त्र पढ़कर यज्ञ वेदी मैं अग्नि स्थापन करे । (थापन करनेका प्रेम ) ॐ अग्निं दृतं पुरोदधे हव्यवाह सुपलुवे देवांचासादयादिह ।
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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