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________________ दत्तक या गोद [ चौथा प्रकरण का देना, दूसरा उसे लेना और स्वीकार करना तीसरा द्विजोंमें दत्तक हवन । द्विजोंके जिस किसी दत्तक विधानमें यह तीनों कृत्य न किये गये हों अथवा इनमें से कोई एक न किया गया हो तो वह दत्तक नहीं होसकता, दत्तककी रसमोंमें हवनको भी उतनाही प्रधान माना है जितना कि लड़केका देना और लेना माना गया है। इस बातकी पुष्टिमें यह कहा गया है कि दत्तक पुत्र गोद लेनेवाले पिताकी धार्मिक कृत्योंका पूरा करनेके लिये लिया जाता है इसलिये और अन्य कारणोंसे भी दत्तक विधानमें हवन आवश्यक कृत्य है । बौधायन और दत्तक चन्द्रिका श्रादिका यही कहना है कि अगर किसी दत्तक में हवनकी रसम न की गई हो तो दत्तक पुत्रको दत्तक लेनेवाले पिताकी सिर्फ उतनी जायदाद मिलेगी जितनी दत्तक पुत्रके विवाहके लिये काफी हो इससे अधिक जायदाद पानेका वह अधिकारी नहीं है। २५४ (२) मदरासके पंडितोंका मत - इस बारेमें मदरासके पंडितोंने यह कहा कि दत्तकमें, दत्तक हवन सिर्फ ब्राह्मणोंके लिये परमावश्यक है दूसरी क़ौमों के लिये ऐसा ज़रूरी नहीं है इस बातको मिस्टर कोलब्रुक और मिस्टर एलिसूने माना है 2 Stra H. L. 87-89; यह बात प्राचीन कालसे मानी गई है। कि शूद्र ऐसी कोई रसम नहीं करसकते जिसमें वेद मंत्रोंकी आवश्कता हो इस रायको मि० स्टील ने माना देखो; Steele. 46 दत्तक हवन द्विजोंके लिये आवश्यक कहा गया है शूद्रोंके लिये नहीं । मि० कोलब्रुक और एलिस कहते हैं कि दत्तक हवन ब्राह्मणोंके लिये परमावश्यक है मगर क्षत्रियों और वैश्योंका ज़िकर नहीं करते, आगे यह भी कहते हैं कि शूद्रोंमें दत्तक हवनकी ज़रूरत नहीं है । श्रर्थापत्ति से यह अर्थ निकलता है कि क्षत्रियों और वैश्योंके लिये दत्तक हवन यद्यपि परमावश्यक नहीं तो आवश्यक अवश्य है । दत्तक पुत्रका गोद लेनेवाले पिताके खानदान और उसके धार्मिक कृत्योंके साथ सम्बन्ध होता है और यह सम्बन्ध परंपरा चलनेवाला होता है, द्विजोंके लिये नित्यकर्ममें हवन करना एक परमावश्यक कर्म माना गया है इसलिये जब दत्तक पुत्र गोद लिया जाय तो ज़रूरी है कि धार्मिक कृत्य जो गोद लेनेवाले पिताके लिये परमावश्यक हैं पूरे किये जावें । अभीतक जितने गोदके मुक़द्दमे हिन्दुस्थानकी हाईकोट के सामने पेश हुए हैं उनमें यह बात साफ तौरसे तय नहीं हुई कि द्विजोंमें दत्तकहवन ज़रूरी नहीं है इसलिये द्विजोंको दत्तक विधानमें दत्तक हवनकी कृत्य करना ज़रूर चाहिये देखो दफा २४६. ( ३ ) ब्राह्मणों में दत्तक हवन ज़रूरी हैं किंतु शूद्रोंमें नहीं देखो; 7 Mad. 548; 13 Mad. 214; 11 B. 381; 5 S. D. 356-418; 6. S. D.219-270; 16 Suth 179; W. N. P. H. C. 1868. P. 103.
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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