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________________ दत्तक या गोद [ चौथा प्रकरण कि ब्राह्मणों की बात क्यों नहीं कही गयी, उत्तर यह है कि ब्राह्मणोंके लिये विशेष वचन दफा १७३ में पहिले कह चुके हैं इससे यहां आवश्यकता नहीं रही। क्षत्रियोंके सम्बन्धमें 'गुरुगोत्रसमेऽपिवा जो पद दिया गया है इस से यह अभिप्राय है कि यदि क्षत्रियों को अपनी जातिमें लड़का न मिले तो अपने पूर्व वंशकर्ता गुरु ( आदि पुरुष ) के वंशके अन्तर्गत लेवें जैसे सूर्य वंशी क्षत्रियों के अन्तर्गत अनेक किस्म की क्षत्रियों की जातियां हैं, यदि अपनी जाति में न मिले तो सूर्य वंश में किसी भी जातिका लड़का गोद लिया जा सकता है । यह पद कुछ विवाद ग्रस्त है इसलिये स्पष्ट करने के लिये अन्य वचन देखो - दत्तक चन्द्रिका - २१६ गुरु गोत्र समेऽपि वेति क्षत्रियाणां प्रातिस्त्रिक गोत्रा भावात् गुरुगोत्र निर्देशः पौरोहित्यान् राजन्यविशां प्रवृणीतेति सूत्रेण तस्य पुरोहितगोत्र भागित्वोक्ते । अर्थात् जब किसी क्षत्रीके वंश का पता न लगता हो तो गुरू के गोत्र सम होने से पता लगाया जा सकता है, दोनोंके गुरूका क्या गोत्र है उसमें एकता निर्देश करना यानी जिसका गोत्र गुरू के गोत्र से मिलता हो 'प्रातिस्विक गोत्राभावात्' कहने से यह अर्थ होता है कि- 'प्रतिस्वभवः प्रतिस्व' ठक् । साधारणः तत्पय्र्य्यायः अन्याऽसाधारणम् आवेशिकम् इति शब्द कल्पदुमे । इस व्याख्या से यह अर्थ हुआ कि जिस प्रकार ब्राह्मणोंके कुछ गोत्र ऐसे होते हैं जो और किसी वर्णके नहीं होते उन्हें असाधारण गोत्र कहते हैं और जो गोत्र सब वर्णों में एवं अनेक जातियोंमें पाया जाय वह साधारण गोत्र कहलाता है | क्षत्रियों में साधारण गोत्र होते हैं इसी लिये कहा गया है कि साधारण गोत्रके होनेसे गुरूके गोत्र से जिसका गोत्र मिलता हो उसका पुत्र गोद लेना चाहिये । ( २ ) हिन्दूलों में भी यही बात मानी गयी है कि जिस जातिका गोद लेने वाला हो उसी जातिका लड़का गोद लिया जाय, देखो - कुसुम कुमारी बनाम सत्यरञ्जन 33 Cal. 999 ट्रिवेलियन हिन्दूलॉ पेज १३२; मुल्ला हिन्दूलॉ पेज ३८८ दफा ३६५: मेन हिन्दूलॉ पेज १७७-१७८, जी० सी० सरकारका लॉ आफू एडाप्शन पेज १६७, ३५७.
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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