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________________ दफा १३६] गोदका अधिकार देनेकी रीति और असर १८३ इमेमें सभी बातें पहलेके दोनों मुकद्दमोंकी तरहपर थीं। फरक सिर्फ इतना था कि इस मुक़द्दमे में विधवाने अपने पतिके सपिण्डोंकी आज्ञासे गोद लिया था। यह दत्तक असली लड़केके मरनेके बाद और उस लड़केकी विधवाकी मौजूदगीमें सपिण्डोंकी मंजूरीसे लिया गया था। जब दत्तक लेनेवाली विधवा मरगई और असली लड़केकीविधवा भी मरगई तब नज़दीकी वारिस ने दत्तक पुत्रसे जायदाद दिलापानेका दावा किया। अदालतसे यह फैसला किया गया कि दत्तक बिल्कुल नाजायज़ था और यह दत्तक वारिसके हकको मिटा नहीं सकता । यही नतीजा बम्बईके मुकदमोंमें भी मानागया। (२) पांच लड़कोंतक गोदकी इजाज़त-इसी सिद्धांतके अनुसार बंबई और बङ्गालमें अनेक मुकदमें फैसल हुए-रामसुन्दर बनाम सुरबनीदास 22, Suth. 21. के मुक़दमे में पतिने अपनी स्त्रीको अधिकार दिया था कि वह एक दूसरेके मरजानेके बाद पांच बेटे तक गोद ले। इस अधिकारके अनुसार विधवाने क्रस्टोचरणको दत्तक लिया। वह गोद लेनेके बाद बारह सालतक ज़िन्दा रहा; पीछे मरगया। फिर विधवाने एक और लड़केको गोद लिया। इस दूसरे लड़केके गोद लेनेपर उत्ताधिकारीने आपत्ति की, हाईकोर्टमें इस बातपर विचार किया गया कि उपरोक्त मुक़द्दमा ( भुवनमई बनाम राकिशोर आचारी 10 Mad. I. A. 279.) के अनुसार विधवाको दूसरा लड़का गोद लेनेका अधिकार नहीं है । कारण यह बताया गया कि कृस्टोचरण बारह वर्षतक ज़िन्दा रहकर समस्त आत्मिक धर्मकृत्य अपने गोद लेनेवाले मृतपिताके सम्बन्धमें पूरेकर चुका और यह समझमें आता है कि उसने सब मज़हबी काम पूरे कर दिये होंगे परन्तु हाईकोर्टने तजबीज़ किया कि बिधवाका दूसरा दत्तक लेना नाजयज़ नहीं है, क्योंकि चाहे लड़का बालिग होगया हो, और हिन्दू धर्म शास्त्रानुसार आवश्यक धर्मकृत्य पूरे कर चुका हो तो भी वह ऐसा नहीं माना जायगा कि लड़केने सब धार्मिक कृत्य समाप्त करदिये जो उसके मृत पिताके लिये शास्त्रमें बताये गये हैं। इसका उद्देश्य यह है हिन्दू धर्मकृत्य परम्परा वंशवृद्धिसे सम्बन्ध रखता है जैसे पिण्डदान या जलदान आदि क्रियाएं तीन पुश्ततक चलती हैं और उनसे मृत पुरुषकी आत्माको लाभ पहुँचता है। भुवनमयीके मुकदमे में हाईकोर्टने यह राय प्रकाशित की कि प्रिवीकौंसिल का यह मतलब था कि भवानीकिशोरकी विधवाको मालिकाना अधिकारसे च्युत रखें, मगर यह राय हालके मुकदमे में जुडीशल कमेटीके फैसलोंसे सन्देहजनक होगई । यह ज़रूर है कि हाईकोर्ट के सामने जो मुकद्दमा था वह उन तीनों मुकद्दमोंसे अलहदा था; गोकि पक्षकारकी तरफसे भुवनमयीके मुकदमेका हवाला दिया गया था मगर वह मुकदमा उससे नहीं मिलता था। पहलेके मुकद्दमेमें लड़केकी मौजूदगीमें गोद लेनेकी इजाज़त थी; दूसरेमें पतिके मरते समय कोई लड़का नहीं था; देखो-8 I. A. 229; 14 I. A. 67; 16 I. A. 166.
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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