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________________ दफा ८६-६० ] नम्बर पुत्रोंके नाम १ चौरस २ क्षेत्रज ३ पुत्रिका ४ कानीन पुत्र और पुत्रोंके दर आचार्यों के मतानुसार पुत्रों के दर्जे ५ गूढज ६ पौनर्भव ७ सहोज ६ | दत्तक १० | कृत्रिम ११ क्रीत १२ अपविद्ध १३ स्वयंदत्त मनु ६५८, १६० x s two याज्ञवल्क्य २।१२८, १३६ बौधायन २/२/३६,३७ वसिष्ठ १७३९, ४० १ ~ + 9 x २ ५ निषाद और पारशव १२ ३ २ ४ ८ ११ 30 WM + 9 √ is ४ + ३ ७ AN AW १० ६ ११ ४ & २ OM ५ ५ २ ३ |१०|३ 20 ६ ६ ५ ७ गौतम २८/३२, ३३ नारद १३ ४४, ४६ विष्णु १५/१, २७ ܚ ८ २ + at 6 0 ९ १३ १२ + ४ x 15 + m 20 ε ८ २ ३ CRA ४ w 9 x + ७ १ od or me xx w239 २ ३ ५ ६ ४ ७ कालिका पुराण शङ्ख, लिखित ४ ११ + १ २ + स्वीकार नहीं किया । किन्तु बिडोरिमेरेज एक्ट नं० से उत्पन्न पुत्रों के हक़ वही होते हैं जो औरस पुत्र के होते हैं । १ २ ३ ७ ५ ४ Xux 948 + १२ १२ ११ 糖 G हारीत देवल ५ ६ ६ on १०४ ३ CAM नोट -- इस नक्शे में कुण्ड, और गोलक नहीं दिखाये गये, १५ सन १८५६ ई० + | १२ १२ १० ६ ६ १० ८ २ ३ २ 文 २ + om १० ७ ε ८ ३ & ७ & ε ३ ५ ११ १० ६ ६ १० १२ ११५ ६ १२ ७ ११ ६ ८ ११ ६ ७ ६ ४ ११ .१० १२ १० ११ १२ १० ११ १२ ११ १० १२ + +6fc + इस निशान से समझना कि आचार्य ने उस पुत्रका हक कुछ नहीं माना । We ८ यम बृहस्पति over mr ४ ५ १० ५ 20 १ ४ Wat ६ | १२ २ の ८ ११ + ७ क्योंकि इनका हक किसीने के अनुसार विधवा विवाह ऊपरके नक़शेसे पुत्रों के दरजे इस तरहपर देखिये - पहले यों देखिये कि मनुने औरसको प्रथम मानकर उसकी अपेक्षा दूसरे पुत्रोंके दरजे माने हैं । जैसे क्षेत्रजपुत्र को दूसरा दरजा, और दत्तकको तीसरा देते हैं । अर्थात् दत्तक से क्षेत्रज, श्रेष्ठ माना । इसी तरह पर दरजोंके हिसाब से श्रेष्ठता और न्यूनता मानी जाती है । जैसे जैसे दरजे बढ़ते जाते हैं, वैसे वैसे उस पुत्रका
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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