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________________ दफा ८८] पुत्र और पुत्रोंके दरज के साथ विधवासे नियोग द्वारा पुत्र उत्पन्न करनेकी आशा मनुने उस हालत में दी है, कि जब लड़की का केवल वाग्दान हो चुका हो और पति सङ्ग होने के पहिले उसका (कन्याका) होने वाला पति मर गया हो ऐसी हालतमें कन्याके साथ नियोग विधिसे मगर विवाह करनेसे पूर्व जो संतित होगी वह वाग्दत्ता पुरुषकी अर्थात् पहिले जिस पुरुष के लिये लड़की देनेका इरादा था. उसकी होगी । यह रवाज दक्षिणी हिन्दुस्थानमें एक जंगली क़ौम में अब भी पाया जाता है और हिन्दुस्थान के दक्षिणी कनारा प्रांतकी तरफ 'गोदा' आदि क़ौम में प्रचलित है तथा उड़ीसा और पञ्जाबके 'जाट, खानदानों में मी माना जाता है । पञ्जाब में कुछ ब्राह्मणों और राजपूतों दोनोंमें है, और भी हिन्दुस्थानके कई राजपूत खानदान इस रवाजको मानते हैं । किंतु इस क़िस्मकी शादियां बहुत ही नीचे दरजेमें शुमार की जाती हैं। इसीसे ऐसी औलादको पूरा हक्न देनेका रवाज नहीं है । यह रवाज क़ानूनकी दृष्टिसे नामुनासिब जान पड़ता है और इस सबबसे भी नामुनासिब है कि पति के मरनेपर विधवा उसी मकान में अपने देवर के साथ रहेगी और देवर अपने मृत भाई के सब अधिकारोंको अपने - १३६ बज़े में करलेगा । प्रथम तो बारिस की हैसियत से दूसरे परिवार में सबसे बड़े मालिककी हैसियतसे तीसरे धर्म कृत्यके अनुसार मालिक होजानेके सबब से जब देवर मृत भाईका श्राद्ध आदि कर्म करेगा तब विरोध नज़र आता है । पञ्जाब का रवाज -- पञ्जाबकी किसी किसी क़ौममें यह रवाज होगया है कि विधवा अपने पति के बड़े भाईके साथ शादी नहीं करती बल्कि उसके छोटे भाई के साथ शादी करती है । देखो - " पञ्जाब कस्टमरीलॉ, जिल्द २, पेज ६४ ऐसे रवाजके होनेसे श्रविभक्त हिन्दू खानदान में उसके विरुद्ध परिणाम पैदा होता है । इस अंशका विशेष विवरण "जगन्नाथ डाइजेस्ट, पेज ३२१ से ३२३ तथा जिल्द २ के पेज ४७६ में दिया गया है। स्मृतिकारोंने ज़मानेके अनुसार कई क़िस्मकी रायें दी हैं, मगर इस वक्त सिवाय चन्द क़ौमोंके और किसी में ऐसा रवाज नहीं है । क्षेत्रज पुत्र को किसीने इस आधार पर पति का माना है, कि स्त्री को क्षेत्र कहते हैं । उस क्षेत्रमें जो पुत्र पैदा होगा, (१) यस्यामृयेतकन्यायावाचा सत्येकृते पतिः । तामनेन विधानेन निजोविन्देतदेवरः । मनु० ६ ० ६९ ॥ यथा विध्यधिगम्यैनां शुक्लवस्त्रां शुचिव्रताम् । मिथोभजेता प्रसवात्सकृत्सकृद्दतानृतौ । मनु ६ । ७०
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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