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________________ विवाह [दूसरा प्रकरण उल्लेख इस रिपोर्ट में किया जाना उचित प्रतीत नहीं होता है क्योंकि उनपर हमारी कमेटी के मेम्बरों में कोई विशेष मतभेद नहीं रहा है । इसलिये हम केवल उन्हीं बातों का उल्लेख करते हैं जिनसे यातो बिल संशोधित होता है या जिसे कमेटी ने बहुमत से स्वीकार किया है। क्लाज़ २--हम लोगों ने इन सम्मतियों पर विचार किया है कि इस क्लाज़ के सब क्लाज़ ए [Cl. 2 (a)] के अनुसार स्त्रियों को बच्चा समझने के लिये उनकी आयु घटा कर ११ वर्ष या १२ वर्ष की कर दी जावे अर्थात उनको ११ वर्ष या १२ वर्षकी आयु तकही बच्चा (Chield ) माना जावे । परन्तु कमेटी की यह ज़ोरदार राय है कि आयु में इस प्रकार की किसी भी न्यूनता का किया जाना, बिल के समस्त अभीष्ट को नष्ट कर देगा अर्थात् कमेटी की राय में स्त्रियां १४ वर्ष की आयु तक ही बच्चा (Chield) इस सबक्लाज़ के अनुसार मानी जावें। क्लाज़ ५-हमलोगों ने विचार किया है कि इस क्लाज़ के अन्तर्गत, जैसाकि इसे सेलेक्ट कमेटी ने प्रारंभ में निर्धारित किया था; सगाई की रस्म (मँगनी की) भी सम्मिलित है । परन्तु यह रस्म बिला किसी अन्य रस्म की अदायगी के विवाह (Marriage ) न समझी जायगी जो यह रस्म विवाह की एक आवश्यकीय प्रारंभिक रस्म है। हमलोगों की यह भी राय है कि बहुत अधिक व्यक्तियों को समेटने में इस क्लाज़ का विस्तार आवश्यकता से अधिक बढ़जावेगा। केवल उसी व्यक्ति का दण्डनीय किया जाना आवश्यक है जिसने वास्तव में विवाह की उस प्रथा को करवाया हो जिससे विवाह निर्विच्छेद हो जाता है। __ हमारी समझ में उस व्यक्ति को निरपराध मान लेना आवश्यक है। जिसने बालविवाह में भाग तो लिया हो परन्तु जो न्यायालय में यह सिद्ध कर सकता हो कि उसने उचित सावधानी के साथ इस बात का संतोष कर लिया था कि विवाह करने वालों की अवस्था विवाहोचित आयु से न्यून नहीं है। अन्त में हमलोगों ने इस प्रस्ताव को भी अस्वीकृत कर दिया है कि बिलके छठे क्लाज़ के अनुसार इस क्लाज़ के साथ भी एक नियम ( Proviso) इस प्रकार का और जोड़ दिया जावे जिसके अनुसार वली (सरक्षक ) को इस बिना पर बालविवाह करने के लिये सर्टीफिकेट मिल सके कि वह अंतःकरण से इस बात पर विश्वास करता है कि उसका धर्म उसको विवाह के लिये वाधित करता है। क्लाज़ ६-हमने यह भी निश्चित किया है कि माता या संरक्षिका (Gaurdian) को कारावास का दण्ड न दिया जावे । हमने इस प्रस्तावको भी अस्वीकृत कर दिया है कि इस काज़ के दूसरे भाग में जिस कल्पना के किये
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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