SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दफा ७८] वैवाहिक सम्बन्ध १०६ ww उससे विवाहिक उद्देश पूरा नहीं कर सकता । परन्तु अगर यह ऊपर कहे हुए दोनों दोष पतिमें हों तो वह स्त्रीको अपने साथ रखने का दावा नहीं कर सकता-पुरुषोत्तमदास बनाम बाईमनी 31 Biom• 610 (६) बुद्धिकी कमज़ोरी--पति बुद्धिहीन है, बेबकूफ़ है, पागल है, ऐसा कह कर; स्त्री पतिके साथ रहनेसे इनकार नहीं कर सकती बिंदा बनाम कौशिल्या 13 All. 28; 10 Bom. 301. (७) कानून के विरुद्ध विवाह--विवाह कानूनके विरुद्ध हुआ है, यह साबित करके या स्त्री पुरुष एक दूसरे के साथ रहने से इनकार नहीं कर सकते हैं। एक राजपुन पुरुष और ब्राह्मण स्त्रीके परस्पर गांधर्व विवाह हुआ था पतिने जब स्त्रीको अपने साथ रखने का दावा किया अदालतने रद्द कर किया 2 Bom. L. R. 128. यह विवाह एक जातिमें न थागांधर्व विवाह देखो--इस किताबकी दफा ४० पैरा ६. दफा ७८ पति-पत्नीकी निजकी जायदाद पर विवाहका असर विवाहिता स्त्री और कंट्राक्ट--अगर किसी दूसरी तरह अयोग्य न हो तो हिन्दू विवाहिता स्त्री, इन्डियन कंट्राक्ट एक्टके अनुसार, कंट्राक्ट कर सकती है। देखरे नथ्थू बनाम जवादर 1 Bom. 131. अगर स्त्री और पुरुष मिलकर कर्ज लेवे तो स्त्री केवल अपने स्त्री धनकी हद तक उस कर्ज की देनदार होगी वह एसी डिकरीमें गिरफ्तार नहीं कराई जा सकती, पुरुष कराया जायगा; देखो--नरत्तम बनाम ननका 6 Bom. 673; 12 Bom3. 28. अगर हिन्दू विधवा ने अपने वैधव्य कालमें क़र्ज़ लियाहो और उसके बाद उसका पुनर्विवाह होगया हो तो भी वह अपने उस कर्जेकी देनदार होगी और ऐसी सूरतमें वह गिरफ्तार भी की जायगी-निहालचन्द बनाम as farar 6 Bom 470. जबकि पतिपत्नी साथ रहते हों तो अदालतका पहला यह स्याल होगा कि पत्नीने जो कुछ काम किया है वह अपने पतिकी तरफसे एजेन्टके तौरपर किया है इसलिये पति और उसकी जायदाद पाबन्द है-वीरसामीचिट्टी बनाम अत्पासामी चिट्टी 1 Mad. 375; जो स्त्री अपनी इच्झासे और बिना उचित कारण अपने पतिसे अलग होकर रहती हो वह अपने कर्ज़की खुदही ज़िम्मेदार है चाहे वह क़र्ज़ उसकी ज़रूरियातके लियेही लिया गया हो । परन्तु वह एसे क़र्जको अपने स्त्रीधनकी हद तक ही देनदार होगी, एसे कर्जकी डिकरीमें वह गिरफ्तार नहीं होसकती 1 Bom. 121 और देखो जाब्ता दीवानी सन् १६०८ की दफा ५६.
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy