SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 188
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दफा ७४-७७] -७७॥ वैवाहिक सम्बन्ध १०७ mmmmmmmmwww दफा ७६ पति, पत्नीके आपसके अधिकार, और उनके प्राप्त करनेके उपाय विवाहके पश्चात् यदि पति या पत्नी आपसमें एक दूसरेके साथ रहने से इनकार करें तो इनकार करने वाले पक्षपर वैवाहिक अधिकार प्राप्त करने का दावा किया जा सकता है । देखो टिकैत बनाम वसन्ता ( 1901 ) 28 Cal. 751; दादजी बनाम रुखमा वाई 10 Bom. 301. स्त्रीका जो यह कर्तव्य माना गया है कि पति चाहे कहीं भी रहे मगर स्त्री उसके साथ रहे, यह हिन्दूलॉ का नियम है, जिसके माननेके लिये सब मजबूर हैं । अगर किसी स्त्रीका रक्षक या स्त्री इस कारण पतिके पास रहनेसे इनकार करती हो कि वह विदेश में उस को ले जायगा यह इनकार नहीं चलेगा । अगर व्याह के पहिले पतिने "यह लिखत लिख दी हो कि वह अपनी स्त्री को उसके बापके घरसे कहीं दूसरी जगह नहीं लेजायगा तो ऐसी लिखत सरासर हिन्दूलॉ के पूर्वोक्त नियम का उद्देश नष्ट करती है। एक तो इसी सबबसे और दूसरे इस सबबसे भी कि ऐसी लिखत सार्वजनिक नीतिके विरुद्ध है, नाजायज़ मानी जायगी; देखो-टिकैतमममोहिनी जमादायी बन म बसन्त कुमारसिंह 28 Cal. 751 अगर पति अपनी स्त्री के पास रहने से बिना योग्य कारण के इनकार करे तो वह मजबूर किया जा सकता है कि वह स्त्री के पास रहे। दफा ७७ किन सूरतोंमें स्त्री अपने पतिके साथ रहनेसे इन्कार कर सकती है ? अगर कोई स्त्री अपने पतिसे अलग रहनेका दावा करे तो उसे यह साबित करनाहोगा कि पतिने कोई ऐसा काम किया है जिसके सबबसे वह उसके साथ नहीं रह सकती। पति अगर जातिच्युत कर दिया गया हो तो उसकी स्त्री उसके साथ रहनेसे इनकार नहीं कर सकती है, और न अदालत पतिको जातिमें शामिल करनेका हुक्म दे सकती है। सहादुर बनाम रजवंता 27 All.96. (१) करता-जब स्त्री यह कहे कि पतिकी करताके कारण मैं उसके पास नहीं रह सकती तो स्त्रीको साबित करना होगा कि पति ऐसी मार पीट करता है जिससे जानके लिये भय है या ऐसा भय होनेका उचित कारण मौजूद है--जमुनाबाई बनाम नारायण 1 Bom 164; मतंगिनी दासी बनाम योगेन्द्रमल्लिक 19 Cal. 84. घरमें रंडी रखना और अपनी स्त्री पुत्र आदिको निकाल बाहर करना तथा स्त्रीको मारना पीटना, और उसे जानकी धमकी देना पतिकी क्ररतामें
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy