SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दफा ६१] वैवाहिक सम्बन्ध wwwwwwwwww हिन्दूलॉ 2 Ed. P. 29; मुल्ला हिन्दूलॉ 2 Ed. P. 365; सम्भुशिव ऐय्यर हिन्दूला 6 Ed. Chapter. 3. हिन्दू विवाह कंट्राक्ट नहीं है क्योंकि हिन्दू विवाह और कन्ट्राक्टमें फरक यह है कि कन्ट्राक्ट अज्ञानावस्थामें नहीं हो सकता अगर किया जाय तो जायज नहीं होगा, मगर हिन्द विवाह धार्मिक कृत्य होनेसे जायज़ है। हिन्दू एक पत्नीके जीते दूसरा विवाह कर सकता है ईसाई नहीं कर सकता। इसी लिये हिन्दलॉ में डाइओर्स यानी तलाक़ नहीं हो सकती । ऐसे विवाहके सम्बन्धमें देखो--गोवर्धन बनाम जसोदामनी 18 Cal 252; इन्डियन डाई. वोर्स एक्ट ४ सन १८६६ ई० हिन्दू विवाह से लागू नहीं होता जब तक कि दोनों ईसाई नहीं हो जाते कलकत्ता और मदरास हाईकोर्टने माना है कि अब पति ईसाई हो जाय तो वह उक्त कानूनके अनुसार तलाक अपनी स्त्रीको दे सकता है 17 Mad 235; 18 Cal. 252. द्विजोंमें तलाक नहीं हो सकता, शुद्रोंकी भी ऊंची जातियों में नहीं हो सकता क्योंकि हिन्दूलॉ का सामान्य सिद्धांत है कि पति और पत्नीका सम्बन्ध कभी टूट नहीं सकता दोनोंके जीवन काल तक रहता है। सभी ऊंची हिन्दू जातियोंमें विधवा विवाह और तलाक़ एक प्रकार होताही नहीं देखो 3 Cal. 35; 107 Mad. 479; हां आजकल सुधार के पक्षपाती ऐसा करने लगे हैं। हालमें बम्बई हाईकोर्टने एक मामलेमें यह राय प्रकटकी कि, इन्डियन डायओर्स एक्ट ४ सन १८६६ ई० की दफा ७ का ख्याल करते हुए उस कानूनमें जिस विवाहकी बात कही है वह ईसाई सिद्धांतका विवाह है। अर्थात् ऐसा विवाह जिसमें एक पत्नीके होते हुए दूसरा विवाह नहीं हो सकता यही ईसाई सिद्धांत है परन्तु हिन्दू सिद्धांत यह नहीं है, हिन्दू एक स्त्रीके होने पर भी दूसरा विवाह कर सकता है इस सबबसे वह कानून हिन्दू विवाहसे लागू नहीं हो सकता; पगनियां बनाम प्रेमसिंह 8 Bom. L. R. 856. एक्ट नं० २१ सन १८६६ ई० के अनुसार मज़हब छोड़ने वाला हिन्दू (स्त्री या पुरुष ) जब ईसाई हो जाता है और ईसाई धर्म को मानने लगता है तब अदालत उस दूसरे मज़हब में गये हुए पुरुष या स्त्रीकी प्रार्थनापर उस विवाहको रदकर देती है जो हिन्दूपनमें हुआ था । उसके बाद दोनों फिर विवाह कर सकते हैं जैसा कि पतिके मरनेपर स्त्रीका और स्त्रीके मरनेपर पतिका देखो-गोवर्द्ध बनाम जसोदामनी 2 Bom. 140. बम्बईमें यह माना गया है कि शूद्रोंमें तलाक़ और विधवा विवाहका अधिकार है 1 Bom. 97, और स्त्री अपनी इच्छासे पतिको छोड़ सकती है तथा बिना मंजूरी पहिले पतिके दूसरा विवाहकर सकती है यह सभ्य समाज के नियमोंके विरुद्ध माना जाता है देखो--नरायन बनाम लाविङ्ग 2 Bom. 140; 10 Bom. H. C. 381,
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy