SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दफा ५८] वैवाहिक सम्बन्ध ८१ बनरजी अपनी हिन्दूला के पेज ३७ में कहते हैं कि यह निश्चित करना कठिन है कि वह किस दरजेका पागल है यानी पागलने कन्यादान स्वीकार कर लिया या नहीं ? पागल या बेअकलके विवाहके बारेमें कोर्ट ख्याल करेगी कि वह विवाह जायज़ है, और उस स्त्रीसे उत्पन्न सन्तान औरस (असली) है 38 I. A. 122; 38 Cal. 700; 13 B. L. R. 534. हिन्दू विवाह धार्मिक कृत्य माना गया है इस लिये उसमें किसी किस्मकी रज़ामन्दीकी ज़रूरत नहीं है और न बच्चपन या दूसरीशारीरिक या मानसिक अयोग्यता से विवाहकी हैसियत पर असर पड़ता है। मगर अब चाइल्ड मेरेज रिस्ट्रेण्ट एक्ट सन १६२८ ई० के अनुसार उमरकी कैद लगायी गयी है, देखो इस प्रकरणके अन्तमें यहां तक यह ग्रंथ छपनेके समय पास नहीं हुआ। (३) बहरा, गूगा, या किसी घृणित रोगसे पीड़ित, जैसे कोढी आदमी विवाह नहीं कर सकता है परन्तु यदि विवाह हो गया हो तो नाजायज़ नहीं माना जायगा। ऐसे आदमी वैवाहिक हक़ प्राप्त करनेकी नालिश नहीं कर सकते अर्थात यदि ऐसे किसी आदमीकी स्त्री उसके साथ प्रथमही रहनेसे इनकार करे, तो पति उसपर ज़बरदस्ती नहीं कर सकता और न अपने कब्जे मैं ले सकता है देखो बाई प्रेममूकर बनाम भीखा कल्याणजी 5 Bom H. CE R. A. C. J_209. (४) हिन्दू पुरुष, एक स्त्री के जीवनकालमें दूसरी स्त्रीसे भी विवाह कर सकता है। अपने आनन्दके लिये हिन्दू पति कितनी संख्यामें भी शादी कर सकता है चाहे वह सब स्त्रियां जीवित हों; देखो- विरसवामी चट्टी बनाम अप्पासामी चट्टी 1 Mad. H. C. 375; 7 Mad. 187; 17 Mad. 235; बनरजीला आफ मेरेज 2 ed. P. 39, 40, 128; दायभाग ६-६, व्यवस्थादर्पण पेज ६७२. ब्रह्मसमाजमें एक स्त्रीके जीतेजी दूसरा विवाह नहीं किया जा सकता देखो-सोना लक्ष्मी बनाम विष्णु प्रसाद 6 Bom, L_R. 58; 28 Bom. 597. ___ अगर किसीने ऐसा कोई इक़रार किया हो कि दूसरी शादी करने पर पहली शादी रद्द समझी जायगी तो यह बात हिन्दूला के सिद्धांतके विरुद्ध है। ऐसा इक़रार रद्दी समझा जायगा और उसका कोई असर नहीं होगा देखो सीताराम बनाम अहीरी 11 B. L. R. 129; 20 W. R. C. 49; इन्डियन कान्ट्रेक्ट एक्टकी दफा २६ एक्ट नं०६ सन १८७२. (५) रंडुवा विवाह कर सकता है और कई हालतोंमें शास्त्रकार उसको विवाह करना लाज़िमी बताते हैं जैसे सन्तानके लिये इत्यादि। किन्तु वृद्ध या अयोग्य पुरुषको नहीं करना चाहिये। 11
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy