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________________ दफा ५७ ] बैवाहिक सम्बन्ध 1 का सम्बन्ध इस मामले में नहीं माना जाता । यह बात अनिश्चित सी है जहांपर वास्तव में अनुलोमज विवाह हो गया हो” अब इस मुक़द्दमेमें प्रधान प्रश्न यह पैदा होता है कि हिन्दूलों के अनुसार वैश्य जातिके पुरुष और शुद्रा स्त्री से उत्पन्न अनौरस लड़की जो वैश्य मानकर व्याही गयी उन दोनोंके परस्पर विवाह जायज़ है या नहीं ? वह जायज़ है, यदि क़ानूनके अनुसार वैश्य और शूद्रा के परस्पर कोई मनाही न की गयी हो, अगर मनाही की गयी हो तो नाजायज़ है । प्रतिलोमज विवाह इस प्रेसीडेन्सी में नाजायज़ माने गये हैं देखो - बाई लक्ष्मी बनाम कल्यानसिंह ( 1900 ) 2 Bom. L. R 128 यह विवाह ब्राह्मण स्त्री और राजपूत पुरुषके साथ हुआ था जो नाजायज़ क़रार दिया गया । बाई काशी बनाम जमुनादास ( 1912 ) 14 Bom. L. R. 547 में तय पाया है कि ब्राह्मण स्त्री विवाहका कन्ट्राक्ट शूद्र पुरुष के साथ नहीं कर सकती इस केसका फैसला जस्टिस चंद्रावरकरने उस समय तक के सब प्रमाणों द्वारा करके इस वर्तमान मुक़द्दमेके निर्णयमें बड़ी सहायता दी है। इस अदालतकी कोई भी नज़ीर हमारे सामने ऐसी पेश नहीं की गयी कि जिसमें अनुलोम विवाह नाजायज़ बताया गया हो । ७७ यह साफ है कि अगर वास्तवमें विवाह हो गया हो तो क़ानूनकी मंशा के अनुसार अनुमान यही होगा कि विवाह हुआ देखो इन्दरन वलिङ्गप्पैय्या बनाम रामसामी पंडियाटलावर 13 M. I. A. 141 अपीलांटकी बहस इस वर्तमान मुक़द्दमे में यह है कि मिश्रित जातिका विवाह हिन्दूलों के सिद्धांतानुसार नाजायज़ है चाहे वह अनुलोमज हो या न हो । यह प्रश्न बड़े महत्व का है यह बात स्मरण रखना चाहिये कि इस प्रकारका विवाह बहुत कालसे प्रचलित नहीं है किन्तु खास तौरसे मना नहीं किया गया है। अब आवश्यक है कि दोनों सूरतोंके बीचका फरक देखा जाय कुछ बचनोंका हवाला मैं नीचे देता । देखो मनु अध्याय ३ श्लोक १२, १३: सवर्णा द्विजातीनां प्रशस्ता दार कर्मणि काम तस्तु प्रवृत्ताना मिमाः स्युः क्रमशो वराः । १२ शूद्रैव भार्या शूद्रस्य सा च स्वा च विशः स्मृते तेच स्वा चैव राज्ञश्च ताश्वस्वा चाग्र जन्मनः । १३ अर्थात् -- ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्यको प्रथम विवाह करनेमें सवर्णकी कन्या श्रेष्ट है और कामसे जो विवाह करना चाहे उसके लिये अनुलोम क्रमसे कन्याएं श्रेष्ट हैं ॥ १२ ॥ शूद्रकी शूद्रा ही स्त्री होती है ऊपरके वर्णोंकी नहीं होतीं । वैश्यकी वैश्या और शूद्रा स्त्री होती है । क्षत्रियकी क्षत्रिया, वैश्या और शूद्रा स्त्री होती है एवं ब्राह्मणकी ब्राह्मणी, क्षत्रिया वैश्या और शूद्रा स्त्री 1
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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