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________________ दफा ५४ ] विवाहमें वर्जित सपिण्ड लड़का उत्पन्न हुआ यहांपर रति (कन्या) और काम (वर) दोनोंका विवाह हो सकता है क्योंकि वर और कन्या दोनों अपने पिताओंके द्वारा सात पीढ़ीके अन्दर एकही मूलपुरुषसे सम्बंध नहीं रखते। वह दोनों आठवीं पीढ़ीमें हैं। __नं० २-विष्णु मूलपुरुषसे दत्त और चैत्र दो लड़के हुए उनके सोम और मैत्र, उनके सुधी और बुध, उनके श्यामा और रति नामकी कन्यायें पैदा हुई । श्यामाके शिव नामका लड़का और रतिके गौरी नामकी कन्या पैदा हुई । पहांपर शिव और गौरीके साथ विवाह होने में दोष नहीं है क्योंकि मूलपुरुष विष्णुसे छठी पीढ़ीमें ये हैं इससे माताके द्वारा पांचवीं पीढ़ीमें सपिण्ड निवृत्त हो गया। नं० ३--विष्णु मूल पुरुषसे दत्त और चैत्र दो लड़के पैदा हुए, उनके सोम और मैत्र, उनके सुधी और बुध, उनके श्यामा और नर्वदा दो कन्यायें हुयीं, उनके शिव और काम एवं शिवके रमा नामकी कन्या और कामके कवि नामक पुत्र उत्पन्न हुआ, यहांपर रमा और कविका विवाह नहीं हो सकता क्योंकि यद्यपि माताके द्वारा सपिण्ड निवृत्त हो चुका तथापि 'मण्डूक प्लुति न्याय' के अनुसार रमा और कवि पिताके सम्बन्धसे सात पीढ़ीके अन्दर होते हैं। नं०४-विष्णु मूल पुरुषसे दत्त और चैत्र दो पुत्र पैदा हुए, उनके सोम और मैत्र, उनके सुधी और बुध, सुधीके श्यामा नामकी कन्या और बुधके शिव नामका लड़का जन्मा, श्यामाकी कांति कन्या और शिवका हर पुत्र उत्पन्न हुआ। यहांपर कांति और हरका विवाह नहीं हो सकता क्योंकि माता के द्वारा यद्यपि कांतिका सापिण्ड्य हरके साथसे निवृत्त हो गया तथापि हर की सपिण्ड कांति बनी रही क्योंकि हर अपने पिताके द्वारा मूल पुरुषसे छठी पीढ़ीपर है। (२) विवाहके सपिण्डके विचार करते समय मनुके उस वचनका ध्यान रखना चाहिये कि असपिण्डाच या मातुरसगोत्रा च या पितुः ३-५ अर्थात् माताका सपिण्ड न हो और पिताके गोत्रका दोष न लगता हो। बनरजी हिन्दूला तीसरे एडीशन पेज ६५-७२ में कहा गया है कि जो कन्या ऊपरके दरजोंके अन्दर हो मगर तीन गोत्र वरके गोत्रसे भिन्न हो तो विवाह हो सकता है यह सिद्धांत बहुत करके बङ्गाल स्कूलमें माना जायगा । दूसरा उदाहरण देखो
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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