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________________ विवाह [दूसरा प्रकरण शरीरके अवयवों के अन्वयसे सपिण्डता अवश्य होती है। क्योंकि धुतिमें कहा गया है कि 'आत्माही आत्मासे पैदा हुआ है और प्रजाके पीछे तूही पैदा होता है तथा आपस्तंबने भी यह कहा है कि वही पिता आदि पैदा होकर प्रत्यक्ष देखा जाता है' । गर्भोपनिषद् में भी कहा है कि 'इस शरीर में छः कोश हैं यानी ६ बस्तु हैं तीन पितासे और तीन मातासे आती है अस्थि स्नायु, मज्जा पितासे, त्वचा मांस रुधिर माता से आते हैं, इस प्रकार वहां वहां पर शास्त्रोंमें अन्वय प्रतिपादन किया गया है यदि साक्षात् पिताके ही सम्बंध से सपिण्डता मानली जाय तो हानि यह होगी कि माताकी संतान तथा माताओंके लड़कोंके साथ सपिण्डता नहीं होगी। अगर समुदाय शक्ति से रूढ़ि मानोंगे तो पहिले मानी हुई अवयव शक्ति त्यागना पड़ेगा और अगर परंपरासे एक शरीरके अवयव सम्बंधसे सपिण्डता मानोंगे तो इसमें जो दोष आता है उसका वर्णन किसी दूसरे स्थलमें करेंगे। ऐसी सपिण्डता मानने में इसका अर्थ अत्यन्त विस्तृत हो जायगा जिससे अनन्त पैदाइशोंसे अनन्त सम्बंध किसी न किसी तरहसे मनुष्योंके बीच पैदा हो जायेंगे । जो कन्या अवस्था और देहके प्रमाणसे कम हो उसका विवाह गृह्य सूत्रमें कही हुई विधिके अनुसार करना चाहिये। दफा ४८ मिताक्षरामें पिण्डदानके आधारपर सपिण्ड नहीं माना गया मिताक्षराकारने सपिण्डके निर्णय करनेमें पिण्डदानका आधार नहीं माना ( लल्लू भाई बनाम काशीबाई 6 Bom. 110, 118, 120 P. C.) इस प्रिवी कौन्सिलकी नज़ीरमें कहा गया है कि जहां कहीं भी सपिण्ड शब्द आवे यहां सीधी तरह पर या और तरह पर शारीरिक सम्बन्धका होना ही समझना चाहिये। यद्यपि त्रिवीकौन्सिल और हिन्दुस्थानकी दूसरी अदालतें दो दावा दारोंके हक़की छोटाई बड़ाई निश्चित करने में धार्मिक कृत्योंका विचार करती हैं परंतु मिताक्षराने रक्तके निकटका सम्बंध होनेसे जो सपिण्ड निर्णयके लिये सिद्धांत रक्खा है और स्मृतिचन्द्रिका,तथा सरस्वती विलासमें भी साफ साफ कहा गया है वही मानना चाहिये देखो-7 M L T. 203; 20 M L. J. 280; और देखो-निर्णयसिन्धु तृतीय परिच्छेद-विवाह,श्रीवेंकटेश्वर प्रेसका छपा पेज ३६७. दका ४९ अपने गोत्र और प्रवरकी कन्याके साथ विवाह वर्जित है हिन्दूला के अनुसार द्विज (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य,) के विवाहने योग्य पह लड़की है जो न अपने गोत्रकी हो और न अपने 'प्रवर' की होः देखो
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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