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________________ अफा ४६-४७] विवाहमें वर्जित सपिण्ड (६) बदलेका विवाह शास्त्रोंमें मना है परंतु जातिकी अगर ऐसी रसम हो तो जायज़ माना जायगा । उत्तर हिन्दुस्थानमें कान्यकुब्ज ब्राह्मणों और क्षत्रियोंमें ऐसा रवाज है कि बराबरवाले कुलसे वह बदलेका विवाह कर लेते हैं । बदलेसे यह मतलब कि दोनों पक्षोंके लड़का और लड़की एकही समय या भिन्न भिन्न समयमें एक दूसरेके यहां विवाह कर दिये जाते हैं । बम्बईके 'फड़वाकुनबी' जातिमें भी ऐसा विवाह जायज़ माना गया है; देखो-बाई उगरी वनाम पटैल पुरुषोत्तम 17 Bom. 400. (२) विवाहमें वर्जित सपिण्ड दफा ४६ सपिण्डकी किसमें ____ सपिण्ड दो तरहके होते हैं एक वह जो विवाहमें काम भाते हैं दूसरे उत्तराधिकारमें । उत्तराधिकारके सपिण्डसे विवाहके सपिण्डमें मेद है । यहां पर विवाहके सपिण्ड नीचे बताये गये हैं । उत्तराधिकारके सपिण्डका विषय देखो-दफा ५७ से ६०१ दफा ४७ विवाहमें वर्जित सपिण्ड हिन्दूलों में वर्जित सम्बन्धियोंमें विवाह नाजायज़ माना गया है । देखो पासषल्क्य स्मृतिका विवाह प्रकरण ५२ अविप्लुतब्रह्मचर्यो लक्षण्यां स्त्रियमुदहेत् अनन्यपूर्विकां कांतामसपिण्डां यवीयसीम् । जिस ब्रह्मचारीका ब्रह्मचर्य नष्ट नहीं हुआ वह अच्छे लक्षणों वाली और जिसका दूसरे पुरुषके साथ सङ्ग नहीं हुआ, रूपवती, अपने सपिण्डोंमे न हो, और अवस्था तथा शरीरमे अपनेसे छोटी हो ऐसी कन्याके साथ विवाह करे। बिज्ञानेश्वर भट्टाचार्य ने इस श्लोकके "असपिण्डा" पदकी व्याख्या अपने मिताक्षरा नामक टीकामें निम्न लिखित की है असपिण्डां समान एकः पिण्डो देहो यस्याः सा सपिण्डा । न सपिण्डा असपिण्डा ताम् । सपिण्डता च एकशरीरावयवान्वये भवति । तथा हि पुत्रस्य पित शरीरावयवान्वयेन पित्रा सह सापिण्ड्यम्
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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