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________________ ५० विवाह [ दूसरा प्रकरण दफा ४० आठ प्रकार के विवाह चतुर्णामपि वर्णानां प्रेत्य चेह हिताहितान् अष्टा विमान्समासेन स्त्रीविवाहान्निबोधत । मनु ३-२० ब्राह्मो दैवस्तथैवार्षः प्राजापत्यस्तथाऽसुरः गांधर्वो राक्षसचैव पैशाचश्चाष्टमोऽधमः । मनु ३-२१ चारों वर्णोंके लिये इस लोक और परलोकमें हित तथा अहित करने वाले आठ प्रकारके विवाहोंको मैं संक्षेपसे कहता हूँ । १-ब्राह्म, २- दैव, ३ - आर्ष, ४ - प्राजापत्य, ५ - श्रासुर, ६ - गांधर्व, ७ - राक्षस और आठवां सब विवाहों में अधम पैशाच विवाह है । ( १ ) ब्राह्म विवाह श्राच्छाद्य चार्चयित्वा च श्रुतशीलवते स्वयम् चाय दानं कन्याया ब्राह्मो धर्मः प्रकीर्तितः । मनु३ - २७ अर्थात् विद्वान्, शीलवान वरको बुलाकर उत्तम वस्त्र और भूषणों से अलंकृत करके कन्या, दानकी जाती है उसे ब्राह्म विवाह कहते हैं । आज कल यही विवाह माना जाता है (देखो दफा ४१, ४२ ) (२) दैव विवाह - यज्ञे तु वितते सम्यगृत्विजे कर्म कुर्वते अलंकृत्य सुतादानं देवं धर्मं प्रचक्षते । मनु ३ -२८ अर्थात् जब यज्ञके समय, यज्ञ कराने वाले ऋत्विजों को यजमान अलंकृत करके कन्यादान कर देता है तब वह दैव विवाह कहलाता है । (३) आर्ष विवाह- एकं गो मिथुनं दे वा वरादादाय धर्मतः कन्याप्रदानं विधिवद्दार्षोधर्मः स उच्यते । मनु ३ - २६ अर्थात् जब किसी धर्म कार्यके लिये वरसे एक अथवा दो जोड़े गौ बैल लेकर उसको विधि पूर्वक कन्या दी जाती है तब उसको आर्ष विवाह कहते हैं । ( ४ ) प्राजापत्य विवाह सोभौ चरतां धर्म मितिवाचानुभाष्य च कन्याप्रदानमभ्यर्च्य प्राजापत्यो विधिःस्मृतः । मनु३ - ३०
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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