SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दफा ३१-३४] हिन्दूलों के स्कूलों का वर्णन जब तक कि वह इतना प्राचीन न होगया होकि वह परिवारका रवाज समझा जाता हो । यह साबित किया जाना चाहिये, कि वह रवाज अज्ञात समयसे चला पाता है और यदि निर्णय स्वाज किसी एक खास परिवारके लिये हो, तो यह नियम अन्य अवस्थाओंसे अधिक सस्तीके साथ पालन किया जाना जाहिये 1 All. 440; 3 M. H. C. 50; 17 W. R. 316&.45 Cal. 835 App; 1927 A. I. R. Cal. 177. रवाजकी शहादत--जब कोई रवाज इस किस्मका बताया जाये जिससे साधारण कानूनका कोई असरही न रहता हो तो उसे मज़बूत शहादतसे साबित करना चाहिये । इस क्रिस्मकी शहादत अगर ऐसे लोग जिनका मुकदमेंसे सम्बन्ध है तो वह ज्यादा असर नहीं रखेगी। रवाजकी शहादत में सिर्फ बड़े आदमियोंकी गवाही काफी न होजायगी बल्कि उदाहरण पेश करना चाहिये जिनसे पूरा प्रमाण मिलता हो देखो-1926 A. I. R. 207 -,Sindh 1925 H. L J. 63. दफा ३३ रवाज कब बन्द हो जायगी खानदानीरवाज मिस्ल स्थानीय रवाजके ऐसी साबित होना चाहिये कि वह बदल नहीं सकती, और हमेशासे चली पाती है तथा अब भी वही जारी है इस तरहपर साबितकी हुई रवाज मानी जायगी। अगर वह रवाज कभी किसी अचानक घटनासे या खानदान वालोंकी मरजीसे या और किसी तरहपर बंद होगयी हो या करदी गयी हो तो यह माना जायगा कि अब वह रवाज बाक़ी नहीं रही । मगर स्थानीय रवाजके बारेमें ऐसा नहीं होगा क्यों कि वह रवाज जिस स्थानमें मानी जाती है सब आदमियोंके बारेमें लागू पड़ती है जो उस स्थानमें रहते हैं; देखो-राजकिशुन बनाम रामजय 1 Cal. 186, 195 ( P. C. ); सर्बजीत बनाम इन्द्रजीत 27 All. 203. दफा ३४ रवाजका सुबूत किसके ज़िम्मे होगा जहांपर कि हिन्दूलॉ से कोई ज़ात या खानदान शासन किया जाता हो और उसके अन्तर्गत कोई रवाज उठाई जाय तो उस रवाजको साबित करना उस पक्षकारपर निर्भर होगा जिसकी तरफसे वह रवाज बयान की गयी हो यानी जब कोई आदमी रवाजका प्रश्न खुद अदालतमें उठाये तो वह रवाज उसे साबितकरना होगा। देखो-भगवानसिंह बनाम भगवानसिंह 21All 412, 423. चंडिकाबकस बनाम मूना कुंवरि 24 All 273; 29 I. A. 70. रूपचंद बनाम जम्बा 37 I. A. 93. .. मगर उस हालतमें जबकि कोई ज़ात या खानदान जो पहिले हिन्दू नहीं थे और अब उन्होंने हिन्दू रवाजे असत्यार करलीं और इस आधारपर वह यह
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy