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________________ दफा ८६५-८६६] धर्मादेकी संस्थाके नियम १०४७ नहीं है शिवायत या महन्तकी हैसियत जायदादके सम्बन्धमें मेनेजरकी है क्योंकि वे उस जायदादके अमानतदार हैं। वे किसी खास ज़रूरी कामोंके लिये जैसे धार्मिक पूजन पाठ जो परमावश्यक हों या मठ या मन्दिरकी मरम्मत या किसी झगड़ेलू मुकदमेबाज़ शत्रुके दायर किये हुये मुकद्दमेसे बचनेके लिये, और इसी तरहके दूसरे कामोंके लिये रुपया कर्ज़ ले सकते हैं। इस प्रकारके क्रोंके लेनेका अधिकार, कर्जा लेने की ज़रूरतको देखकर विचार किया जायगा। शिवायत या महन्तको कर्जा लेनेका जो अधिकार दिया गया है वह उसी तरहका है जैसाकि नाबालिगके लाभके लिये उसका मेनेजर कर्जा ले देखोहनूमानप्रसाद बनाम बबुई मुसम्मात 6 Mad. I. A. 393. (२) ज़रूरतमें कर्जा लेनेके अधिकारके अलावा शिवायत या महन्त देवोत्तर जायदादका इन्तकाल भी कर सकता है, उनके इन्तकाल करनेका अधिकार सीमाबद्ध है । जायज़ ज़रूरतोंके लिये केवल ऐसा हो सकता है, अगर एसी ज़रूरत न हो तो वे देवोत्तर जायदादको रेहन या वय नहीं कर सकते और इनाम या मुकर्ररी पट्टा भी नहीं दे सकते, देखो-36 Cal. 1003, 36 I. A. 148, 14 Ben. L. R. 450; 2 I. A. 145, 2 Cal. 341, 4 I. A. 52, 13 M. I. A. 270; 19 Bom. 271; 22 Cal. 989; 24 Cal. 77; 25 All. 296, 33 Cal. 507. (३) नरायन बनाम चिन्तामणि (1881 ) 5 Bom. 393. कलक्टर आफ् थाना बनाम हरी (1882) 6 Bom. 546. इन दोनों मामलों में बम्बई हाईकोर्टने यह ज़रूरी राय जाहिरकी कि किसी भी ज़रूरतमें धर्मादेकी कुल जायदाद नहीं बेची जा सकती और न हमेशाके लिये इन्तकालकी जा सकती है, तथापि उस जायदादकी आमदनी ज़रूरत पड़नेपर रेहनकी जा सकती है देखो-16 Bom. 625-6353 19 Bom. 271. इलाहाबाद हाईकोर्टने इसके विरुद्ध राय जाहिरकी, कहाकि अगर जायज़ ज़रूरत हो तो कुल जायदादका इन्तकाल किया जा सकता है, देखो-परसोतम गिरि बनाम दत्तगिरि (1903) 25 All. 296. मदरास हाईकोर्टने 27Mad.465. वाले मुकदमे में बम्बई हाई कोर्टके अनुसार राय ज़ाहिरकी मगर उसने 34 Mad. 535. में इलाहाबाद हाईकोर्ट की रायके अनुसार अपनी राय बदल दी। अब प्रश्न यह रह जाता है कि देवोत्तर जायदाद कुल इन्तकालकी जा सकती है या नहीं? जुडीशल कमेटी बङ्गालने हालके मुकदमे में, अभिराम बनाम श्यामाचरण (1909) 36 Cal. 1003; 36 I. A. 148. में कहा कि देवोत्तर जायदादके इन्तकाल करने का अधिकार, शिवायत या महन्तका उस ज़रूरतके साथ विचार किया जायगा जिसके कारण इन्तकाल किया गया हो,जुडीशल कमेटीके सामने जो मुकदमा था उसमें महन्तने देवोत्तर जायदादका हमेशाके लिये मुक्कररी पट्टा देदिया था अदालतने अपनी राय जाहिर करते हुये कहा कि इस मुकदमे में दूसरा प्रश्न
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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