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________________ धार्मिक और खराती धर्मादे [ सत्रहवां प्रकरण तो यह जायज़ माना जायगा देखो - सीताप्रसाद बनाम ठाकुरदास 5 CL R. 73; 27 All. 581; 9 C. W. N. 914; 12 W. R. C. R. 427. १०४४ गोसाइयोंमें यह बात मानी गयी है कि, गोसाईके पश्चात् हमेशा के लिये उसके शिष्य उसके स्थानापन्न होते हैं, देखो - 12 Bom. H. C. 214; गोपालचन्द्र चक्रवर्ती बनाम राधारमणदास बाबाजी ( 1911 ) 16 C. W. N. 108 के मामलेमें धर्मादेकी एक शर्त में ऐसा लिखा था कि “शिष्य शिष्यानुक्रमे " इस वाक्य से यह अर्थ माना गया कि एक शिष्य अपने गुरु भाईका भी उत्तराधिकारी हो सकता है । रवाज - अगर धर्मादा क़ायम करने वालेने पदाधिकारियोंके उत्तराधिकारके विषयमें कुछ न लिखा हो और इस बातकी कोई शहादत न हो तो प्रत्येक मामलेमें उस खास संस्थाके रवाज के अनुसार उत्तराधिकारी चुना जायगा, देखो - जानकी देवी श्रीमती बनाम श्रीगोपाला चार्य 10 I. A. 321 9 Cal. 766; 13 C. L. R. 30; 11 M. I. A. 405; 8 W.R. P. C. 25; 13All.256. उत्तराधिकारके ऐसेही मामलेमें प्रिवी कौन्सिलने कहा कि "जब कि धर्मादे की शर्तों में इस तरहके उत्तराधिकारके विषय में कुछ न लिखा हो तो कौन आदमी महन्तकी हैसियतसे उत्तराधिकारी है, इसका निर्णय उस धर्मादेकी रसम और रवाजके अनुसार होगा, और यह रसम और रवाज, साक्षियोंसे साबित करना होगा तथा वादीको यह दिखाना होगा कि वह रवाज के अनुसार धर्मादेका उत्तराधिकारी होनेका हक़ रखता है" ऐसाही कई मामलोंमें प्रिवी कौन्सिलने यही राय ज़ाहिरकी है, देखो - 13 I. A 100-105, 9 All. 1; 7 C. W. N. 145. यही सिद्धान्त मन्दिर के मेनेजरसे भी लागू होगा तथा मदरासके 'देवस्थानं' आदिले लागू होगा, देखो - 20 I. A. 150; 16 Mad. 430; 7 Mad. 499. एक मामले में घरेलू तौर से आपस में यह इन्तज़ाम किया गया था कि बारी बारीसे पदाधिकारीकाम करें और १६ वर्ष तक यह इन्तज़ाम जारी रहा अदालत ने इसे मानाकि ठीक है, देखो - 33 I. A. 139; 29 Mad. 283; 10 C. W. N. 825. किसी धर्मादेकी क्या रवाज है यह बात उसी तरहके दूसरे धर्मादोंका रवाज देखने से मालूम हो सकता है । बल्लभाचार्य गोसाईके मन्दिरोंके लिये, देखो - मोहनलालजी बनाम मधुसूदनलालजी (1910) 32 All. 461. दफा ८६४ मेनेजर अगर कोई अपने धर्मादेकी लिखतमें, मेनेजर होनेका पुश्तैनी हक़ क़ायम कर दिया हो तो मेनेजरका पद पुश्तैनी भी हो सकता है यदि लिखत न हो तो ऐसा हक़ साबित करना पड़ेगा; देखो - 7 Mad. 499. अगर ऐसी
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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