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________________ दफा ५४४] धर्मादेकी संस्थाके नियम १०२१ 'उपाधि' धारकों के विरुद्ध नहीं कर सकता। योग्य रीतिसे महन्तके नियुक्त न करने की सूरतमें उस मठके चेलोंको अधिकार है कि उस महन्तके पश्चात् जब ऐसा फिर समय आवे तो वे योग्य नियुक्ति होनेके लिये बाध्य करें मगर ऐसा अधिकार नहीं है कि महन्तके नियुक्त किये जा चुकने पर ऐसा उजुर पेश करें कि उसकी नियुक्ति योग्य रीतिले नहीं हुई। देखो-22 Mad. 117. धर्मादाके क़ायदों के अनुसार जिस महन्तकी नियुक्ति कीगयी हो उसे छोड़कर किसी महन्तको ऐसा अधिकार नहीं है कि सिर्फ अपनी नियुक्तिके कारण कोई विशेष लाभ प्राप्त कर सकनेके लिये कोई शर्त उसमें जोड़ दे। देखो -- 27 I. A. 69; 2 Mad. 271; 14 C. W. N. 329; 2 Bom. L...R. 597; 4 I. A. 763 1 Mad. 235; 34 Cal. 828; 11 C. W. N. 788 S C. 35 Cal. 226; 12 C. W. N. 323, 3 C. L. R. 11295 Mad.89%8 15 Mad. 389; 7 Mad. 337; 19 M. 211. गुरु बन्धूने चेलेपर दावा किया कि मठका गुरू मैं नियत किया जाऊं। गुरू रामगिरि मरनेसे पहले काविलकरको अपना उत्तराधिकारी नियत कर गये थे इसलिये काविलकरका जवाब था कि मुद्दईको गुरू मियत होने का अधिकार नहीं है । गुरूने कोल्हापुर दरबारसे काविलकरको चेला बनानेके लिये श्राचा प्राप्तकी थी। चेला बनानेसे पहले गुरूने उसे कामकाज सीखने के लिये दूसरी जगह भेज दिया और अपने मरनेके समय गुरूने जब बुलाया तब वह अभाग्यवश न आ सका और गुरूका स्वर्गधाम होगया. इससे यह माना गयां कि गुरू अपना उत्तराधिकारी काविलकरको बनाना चाहते थे। तय हुआ कि मुद्दईका दावा खारिज हो,गद्दीधर साधुओंमें अगर महन्त यागुरू अपना उत्ता राधिकारी नियत करदे,चाहे वह उनके पंथ या सम्प्रदायका न भी हो तो जाय. दाद गद्दीकी उसे मिलेगी । गुरुबन्धुका हक चेलेसे पीछे है, देखो-24 B. L.R.707. गुरू चेलेका सम्बन्ध, पिता-पुत्रके भांति माना जाता है । एक गुरूका चेला उस गुरूके, गुरूका पौत्र है। एक गुरूके दो चेले आपसमें भाई भाई माने जाते हैं। जैसे पिताके मरनेपर पुत्र जायदादका अधिकारी होता है वैसेही गुरूके मरनेपर उसका चेला जायदादका अधिकारी होता है, देखो-महन्त नन्दकिशोरदास बनाम कालाबाई 94 I. C. 703; 1926 A. I. R.351Nag. दफा ८४४ इन्तकाल खास सूरतोंके पैदा होनेके कारण मठाधीश महन्त या मुख्याधिष्ठाता अपने धार्मिक कामों तथा पूजन आदिके अधिकारको अपने ऐसे उत्तराधि: कारीके नाम इन्तकाल कर सकता है जो सब तरहसे उन धार्मिक कामों और पूजन आदिके करने के योग्य हों, देखो-मंछाराम बनाम प्राणशंकर 6 Bom.
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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