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________________ धार्मिक और खैराती धर्मादे [सत्रहवां प्रकरण w wwimamrammarwwwwwwwwwwwwwwwwww.anirmwaran स्याल करेगी कि जो जायदाद किसी खास मतलबके लिये अर्पण कर दी गयी है तो महन्त उस जायदादकी आमदनी वसूल करके उस खास मतलबके पूरा करनेका दूस्टीकी हैसियतसे अधिकार रखता है, देखो 33 Mad. 265 F.B. __ यह दावा स्वामी विवेकानन्दने देवमूर्ति की तरफसे जायदाद पानेके लिये किया था। महन्त अजोध्यापुरी के एक रिश्तेदारने यह जायदाद बेच दी थी यह जायदाद जब देवमूर्ति में लगाई गयी थी तो उसके वारेमें कोई नियम महीं किया गया था मुहालेहका कहना यह था कि जायदाद तो देवमूर्ति की अवश्य है पर देवमूर्तिकी तरफसे स्वामी जी दावा नहीं करसकते । यह दावा बहैसियत शिवायात या पुजारीके नहीं दायर किया गया था स्वामी विवेका नन्दने देवमूर्ति की तरफसे दायर किया था अदालतने माना कि ऐसा दावा दायर हो सकता है। स्वामी जी का लाभ जाती मूर्तिके विरुद्ध कुछ नहीं है, देखो-21 A. L. J. 148; 1923 A. I. R. 160 All. महन्त भुवनगिरि, पाकरी खेमकरनकी गद्दीके महन्त थे उन्होंने मन्दिर की जायदाद मुन्तकिल कर दी। रामरूपगिरिने यह दावा किया कि भुवनगिरि मर गये हैं, जो जायदाद देवस्थानकी उन्होंने मुन्तकिलकी थी जायज़ ज़रूरत के लिये नहीं की थी मसूत्र की जाय । सुबूत यह हुआ कि भुवनगिरि ज़िन्दा हैं दावा खारिज हुआ और हाईकोर्टने तय किया कि मठका दृस्टी मठका महन्त नहीं माना जायगा, महन्तके अधिकार, ट्रस्टीसे ज्यादा होते हैं, मठ की जायदाद की वापिसीका दावा, मुन्तकिल होनेकी तारीखसे १२ सालके अन्दर होना चाहिये, देखो-3 P. L. T. 352. दफा ८३९ महन्तका आमदनी पर आधिकार अगर कोई खास रवाज या कोई आशा बाधक न हो तो महन्त धर्मादेकी कुल आमदनीके खर्चका हिसाब किसीको देनेके लिये बाध्य नहीं है कोई हिन्दू उससे हिसाब नहीं मांग सकता अदालत उसे हिसाब देनेके लिये हुक्म न देगी लेकिन उसका यह कर्तव्य है कि उस आमदनीसे मठका उद्देश पूरा करे और फिर जो बचे उसे अपनी इच्छानुसार खर्च करे महन्त न तो लाइफ-टेनेन्ट (Life tenant) है और न ट्रस्टी ( Trustee ) देखो--33 Mad. 265, 10 Mad. 375; 27 Mad. 435; 12 Bom. H. C. 214, 20W. R.C. R. 471. मूलधन-मठके मूलधन पर महन्तका अधिकार ठीक उतना ही है जितना कि मन्दिरके मेनेजरका मन्दिरकी जायदाद पर होता है-देखो इस किताबकी दफा ८५८. दफा ८४० महन्तका पागल होजाना अगर कोई रवाज बाधक न हो तो पागल हो जानेकी सूरतमें भी मठाधीश या महन्त अपने अधिकारोंसे बंचित नहीं होता; देखो-27Mad. 435. किन्तु मन्दिरका शिवायत या पुजारी आदि हो जाते हैं।
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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