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________________ दफा ८२५-८२६ ] धर्मादेकी संस्थाके नियम या स्कूल मेरे नामसे कायम करें, वसीयतमें जो खर्च बताये गये हैं करते रहें और अगर वह किसी खर्च के बदलने की ज़रूरत समझें तो उन्हें अधिकार होगा, जो शिक्षाकी संस्था वह क्रायम करेंगे उसका नाम अवश्य 'स्कूल' होना चाहिये और कलक्टर साहबको प्रबन्ध तथा स्कूल के सब काम करनेका पूर्ण अधिकार बना रहेगा स्कूलका भवन बनाने के लिये २५००) रु० और उन्हें दे दिये जावे" अदालतने मानाकि इस तरहकी शर्त अनिश्चित या मुबद्दम नहीं है तथा यह दान खास कामके लिये खास आदमीको किया गया है, यह भी मानाकि यह दान गवर्नमेन्टके हाथमें नहीं दिया गया बल्कि लखनऊ के कलक्टर को दिया गया है, 'कलक्टर' से डिपुटी कमिश्नर जिला लखनऊ समझा देखो- - 8 Indian Cases 695. जायमा, ग़रीब हिन्दुओं को भोजन- दक्षस्मृतिमें बचन है कि १०१३ ( " दीनानाथ विशिष्टेभ्यो दातव्यं भूतिमिच्छता " ऐश्वर्य के चाहने वालोंके लिये उचित है कि वे दीन, अनाथ सज्जन गरीब हिन्दुओं को दान दें एक आदमीने वसीयत की कि हमारे घरके दरवाज़े पर हमारी आमदनीके फंडमेंसे सदासे लिये गरीब हिन्दुओंको भोजन कराया जाय, जायज़ माना गया 34 Cal. 5. (५) चिकित्सालय - अस्पताल - एक वसीयत नामेमें अस्पतालमें रहने वाले एक आदमीके नाम दान किया गया, माना गया कि यह दान अस्प तालका उत्तम प्रबन्ध रखने और उसके कामके लिये है इससे जायज़ है । सार्वजनिक चिकित्सालयके नाम जो जायदाद दानकी जाय और लिखितमें स्पष्ट लेख न लिखा गया हो तो माना जायगा कि वह नाजायज़ नहीं है; देखो - 6 C. W. N. 321. (६) ग्ररीव रिस्तेदार - एक आदमीने वसीयत में लिखा कि मैं अपने ट्रस्टियोंको सूचित करता हूं कि वे अपने विचारसे जिसकी रक्रम २५०००) ६० से ज्यादा न हो मेरे ग्ररीव रिस्तेदारोंको बाट दें जिनमें मेरे नौकर भी शामिल रहेंगे माना गया कि यह खैरात है और जायज़ दान है; देखो - 31 Cal. 1663 इस विषय में 'दक्षस्मृति ' में कहा है मातापित्रोर्गुरौमित्रे विनीतेचेोपकारिणि दीनानाथ विशिष्टेभ्यो दत्तंचसफलं भवेत् । ३-१६ माता, पिता, गुरु, मित्र, शीलवान, उपकारी पुरुष, दीन, अनाथ, और सभ्य आदमियोंको दान देना सफल है ।
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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