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________________ धार्मिक और खैराती धर्मादे सत्रहवां प्रकरण - नोट -दफा ८१७ में कहे हुए उद्देशों के लिये जो संस्थायें स्थापित हैं उन्हींसे इस प्रकरण का सम्बन्ध है। जब कोई संस्था कायम करदे पीछे उसमें चन्देका धंन ममिल हो जाय, अथवा चन्देसे संस्था कायम की गयी हो पीछे कोई अपना धन लगादे, इन दोनों सूरतोंमें जिसके हाथमें वह संस्था होगी वह ट्रस्टी मेनेजर की हैसियत रखता है और उससे ट्रस्टी और मेनेजर के विषयमें कहे हुए सब नियम लागू होते हैं । चन्दा वसूल करके किसी संस्थाके स्थापकके अधिकार ट्रस्टी या मेनेजर से अधिक महीं होते । मगर अनेक मुकद्दमें इसके विरुद्धभी फैसल हुए हैं, यदि किसीने पहले अपने निजके धन से कोई संस्था कायम की पीछे कुछ धन उस संस्थाकी मददके लिये चन्दे आदिसे प्राप्तहो गया तो महज़ इस कारण से स्थापक का हक नहीं मारा जायगा हां वह सूरत भिन्न है कि जब संस्था पहले चन्दसे कायमकी गयी हो, क्योंकि उस संस्थाके जन्मसे ही धर्मादे का कानून एक्ट नं. २. सन १८६१ ई. लागू हो जाता है। मंदिरों के स्थापकों, प्रबंधकों, पुजारियों, शिवायतों तथा मठाधर्धाशों, महन्तों और सभी धार्मिक या खराती संस्थाओके स्थापकों ट्रस्टियों और मेनेजरोंको इस प्रकरणके पढ़नेसे उन्हें अपने कर्तव्य अधिकारों और कानूनी बातोंका अच्छा ज्ञान प्राप्त हो जायगा और वे उन भूलोंसे बच सकेंगे जो अन जानपने से हो जाया करती हैं। दफा ८१७ धर्मादोंका उद्देश हिन्दुस्थानमें धार्मिक, खैराती और शिक्षा सम्बन्धी तथा सार्वजनिक मतलबोंके लिये बहुतसे धर्मादे हैं। उनके उद्देश भी अनेक होते हैं कहीं तो किसी मूर्ति या देव मूर्ति के लिये या किसी मन्दिरके लिये या निजके या सार्वजनिक धार्मिक कृत्यों या पूजाके लिये और कहीं खैराती कामों के लिये या किसी सम्प्रदायके या धर्म, शिक्षा, व्यापार, स्वास्थ्य, सार्वजनिक रक्षाकी उन्नतिके लिये या और किसी कामके लिये जो मनुष्य मात्रके लिये लाभकारी हों,या किसी पंथ या सम्प्रदाय या जमात या संघके लिये लाभकारी हों,देखोट्रन्सफर आव् प्रापर्टी एक्ट नं०४ सन् १८५२ ई० की दफा ११७. दफा ८१८ धर्मोदा किस तरह कायम करना चाहिये धर्मादेकी सृष्टि दान या वसीयत या और किसी तरह जायदादका इन्तकाल करके की जा सकती है। धर्मादा कायम करने के लिये 'लिखत' कोई
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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